
धर्मस्थल के जंगलों में 4 जुलाई को पहले सैकड़ों लाशें दफन करने का दावा। फिर करीब 50 दिन बाद पूर्व सफाईकर्मी मास्क मैन उर्फ चिन्नया उर्फ चेन्ना की गिरफ्तारी हुई। केस की जांच कर रही SIT ने ही मास्कमैन चिन्नया को 23 अगस्त को गिरफ्तार किया। उस पर जांच टीम
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इसके अलावा पूर्व सफाईकर्मी ने जंगल में लाशें दफनाने के तरीके को भी गैरकानूनी बताया था। उसने कहा था कि बिना पुलिस की मौजूदगी में सब हुआ। जबकि डॉक्टरों के बयान आए और कुछ रिकॉर्ड भी मिले जिससे कन्फर्म हुआ कि पोस्टमॉर्टम और पुलिस को सूचना देकर ही लाशों को दफनाया गया।
चिन्नया के गलत दावों और बयान बदलने को लेकर उसे गिरफ्तार किया गया। अब SIT उसका बैकग्राउंड खंगाल रही है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या पूर्व सफाईकर्मी की गिरफ्तारी से धर्मस्थल केस की जांच बंद हो जाएगी। हालांकि, एक्सपर्ट की मानें तो अभी कई सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब आना बाकी हैं।
इनमें सबसे अहम पंचायत रिकॉर्ड में दर्ज 160 लावारिस लाशों का रिकॉर्ड है। इनकी पहचान कराए बिना नियमों को ताक पर रखकर दफना दिया गया। इसके साथ ही SIT को लापता हुई लड़कियों की भी कई शिकायतें मिली हैं। जिनकी जांच अभी होनी है। दैनिक भास्कर की टीम ने धर्मस्थल से जुड़े ऐसे ही मामलों की पड़ताल की।

धर्मस्थल के पूर्व सफाईकर्मी के दावे के बाद ही 19 जुलाई को कर्नाटक सरकार ने मामले की जांच के लिए SIT बनाई। फिर SIT ने उसके दावों के आधार पर 13 जगह खुदाई कराई।
पूर्व सफाईकर्मी की गिरफ्तारी जांच का हिस्सा, कई एंगल पर जांच जारी अब धर्मस्थल केस में आगे क्या हो सकता है। क्या पूर्व सफाईकर्मी की गिरफ्तारी के बाद धर्मस्थल को लेकर उठ रहे सवाल की जांच बंद हो जाएगी। इसे लेकर हमने कर्नाटक पुलिस के एक अधिकारी से बात की। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने इस केस को लेकर 5 बड़ी बातें बताईं…
1. जब कोई गवाह खुद अलग-अलग बयान देता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई जरूरी है। पूर्व सफाईकर्मी की गिरफ्तारी उसी जांच का एक हिस्सा है। इसकी गिरफ्तारी से धर्मस्थल केस की फाइल बंद हो जाएगी। ये कहना अभी जल्दबाजी होगी।
2. SIT के सामने कुछ गलत तथ्य जरूर पेश किए गए, लेकिन इनके साथ ही कुछ ऐसी शिकायतें भी मिली हैं, जिनकी जांच जरूरी है जैसे- लावारिस लाशों को दफनाने में क्या कोई गड़बड़ी हुई है या वो नियमों के अनुसार है। इसकी जांच की जा रही है।
3. धर्मस्थल में मिली लावारिस लाशों की पहचान कराने के लिए क्या कदम उठाए गए। अभी मिसिंग की कुछ शिकायतें मिली हैं। उनकी भी जांच हो रही है। इसके अलावा खुदाई के दौरान जो हड्डियां मिली हैं, उसकी भी फोरेंसिक रिपोर्ट आएगी।
4. हड्डियों, कंकाल और मिट्टी के सैंपल की फोरेंसिक रिपोर्ट अभी मिलेगी। तमाम दावों और फोरेंसिक रिपोर्ट की भी जांच होनी है। इसके बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी। उसे कोर्ट में सौंपा जाएगा। ये रिपोर्ट या तो क्लोजर हो सकती है या फिर ये जांच को कोई नई दिशा भी दे सकती है, जिस पर आखिर में कोर्ट फैसला करेगा।
5. सौजन्या केस में कोर्ट का फैसला आ चुका है, लेकिन पूर्व सफाईकर्मी के अलग-अलग बयान से इस केस को भी नई दिशा मिल सकती है। सौजन्या का परिवार भी कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है। वो भी मर्डर के असली आरोपी को सामने लाने की मांग कर रहे हैं। उनकी शिकायत पर भी रिपोर्ट देनी है।

सबसे पहले बात गिरफ्तार हुए चिन्नया की… तीसरी क्लास तक पढ़ाई, 3 शादियां, लाशों से गहने चुराने का भी लगा आरोप 47 साल का चिन्नया उर्फ चेन्ना मूलरूप से धर्मस्थल से करीब 235 किमी दूर कर्नाटक के मांड्या जिले का रहने वाला है। उसने थर्ड क्लास तक पढ़ाई करने के बाद छोड़ दी। 1994 में वो गांव छोड़कर धर्मस्थल आ गया और यहां सफाईकर्मी का काम करने लगा। धर्मस्थल के नेत्रावती नदी के पास बने स्नानघाट पर उसे सफाई की जिम्मेदारी मिली थी। यहां बने टॉयलेट्स की सफाई का जिम्मा भी इसी का था।
चिन्नया से जुड़े लोगों ने हमें बताया कि उसने कुल तीन शादियां की हैं। अभी वो तीसरी पत्नी के साथ रह रहा है। घरवालों ने उसे SIT के सामने बयान देने जाने भी मना किया था। उसके करीबियों को पहले से शक था कि SIT उसे एक न एक दिन जरूर गिरफ्तार कर लेगी, इसलिए बयान देने की जरूरत नहीं है।
चिन्नया के गांव के लोगों ने ये भी बताया है,

जब कभी वो धर्मस्थल जाते थे तो वो उन्हें मंदिर ले जाता था। वहां से एक बार उसने गांव के लिए कई साड़ियां बंटवाई थीं। लोगों ने ये भी कहा है कि हमने सुना है कि वो धर्मस्थल में मिलने वाली लाशों से गहने चुरा लेता था।
चिन्नया को लेकर SIT इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं जानबूझकर पूर्व सफाई कर्मी को मोहरा तो नहीं बनाया गया। इसकी भी पड़ताल हो रही है कि इसके पीछे कोई और तो नहीं, क्योंकि पूर्व सफाईकर्मी ने कोर्ट में बयान देने से पहले ही कुछ लोकल मीडिया को इंटरव्यू दिया था। ये इंटरव्यू 3 जुलाई से पहले ही रिकॉर्ड किए गए थे। इसके बाद पुलिस और कोर्ट में बयान दिया था।

अब बात धर्मस्थल को लेकर उन सवालों की, जिनके जवाब मिलना अभी बाकी है…
21 साल में 160 से ज्यादा लावारिस लाशें मिलीं, एक की भी पहचान नहीं धर्मस्थल में जो लाशें दफनाई गईं, उनकी आज तक पहचान क्यों नहीं हुई। जिनकी लावारिस लाशें मिलीं, वो कहीं तो गुमशुदा होंगे। ये सवाल धर्मस्थल ग्राम पंचायत की तरफ से तैयार रिकॉर्ड से ही उठ रहे हैं। ये रिकॉर्ड सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल में सामने आया है। इन सवालों के पीछे आधार सिर्फ पूर्व सफाईकर्मी के दावे ही नहीं हैं।
1994 से लेकर 2015 के बीच धर्मस्थल में मिली लावारिस लाशों की पहचान क्यों नहीं की गई। धर्मस्थल पंचायत के रिकॉर्ड में 160 से ज्यादा लावारिस लाशों की डिटेल मिली है, जिन्हें दफनाया गया। इसके लिए बाकायदा पंचायत से लाशें दफनाने के लिए पैसे भी खर्च किए गए, लेकिन इनकी पहचान क्यों नहीं हो पाई। ये लाशें दफनाने में जल्दबाजी क्यों की गई। ये सवाल आज भी अनसुलझे हैं।
एक टीचर के साथ 2012 में धर्मस्थल आई थी बहन, लेकिन लौटी नहीं धर्मस्थल में आकर लापता हुए लोगों की भी पूरी जांच रिपोर्ट सामने नहीं आई है। हमें जानकारी मिली है कि पिछले एक महीने में कई लोग SIT के सामने पेश हुए, जो अपने परिजन के गुमशुदा होने की शिकायत कर चुके हैं। इनमें से 14 अगस्त को SIT में अपनी लापता बहन की शिकायत करने वाले नितिन से हमने बात की।
नितिन बताते हैं, ‘मेरा घर धर्मस्थल से करीब 40 किमी दूर कावलकट्टा गांव में हैं। हम दोनों भाई लापता बहन की शिकायत लेकर 14 अगस्त के आसपास SIT में गए थे। मेरी बहन हेमलता करीब 13 साल पहले 2012 में एक टीचर के साथ धर्मस्थल गई थी। टीचर वापस आ गई, लेकिन हेमलता नहीं आई।

हाथ में बहन की फोटो लिए नितिन मायूस हैं, लेकिन एक उम्मीद है कि शायद इतने साल बाद SIT जांच में गुमशुदा बहन की कोई खबर मिल जाए।
‘हमने उसी वक्त कावलकट्टा के नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हम फिर धर्मस्थल एरिया वाले थाने पहुंचे। बहन के लापता होने की सूचना दी। ये भी बताया कि मेरी बहन धर्मस्थल आई थी और यहीं गायब हुई। पुलिस ने हमारा फोन नंबर और शिकायत कॉपी ले ली। साथ में बोले कि 5-6 दिन में बताएंगे, लेकिन आज 13 साल बीत चुके हैं। कोई जवाब नहीं मिला।
नितिन कहते हैं, ‘पूर्व सफाईकर्मी के दावों में कितना सच है। ये तो हमें पता नहीं, लेकिन ये जरूर है कि मेरी बहन अब भी लापता है। वो स्व सहायता ग्रुप के लिए काम करती थी। उसने धर्मस्थल से जुड़े ट्रस्ट से लोन लिया था। उसके गायब होने के बाद लोन की रकम चुकाने के लिए भी फोन आया था। हमने वो बकाया पैसा जमा भी कर दिया था। फिर भी हमारी बहन आज तक घर नहीं लौटी।‘
‘हमें SIT पर भरोसा है। इसलिए हम उसके पास शिकायत लेकर गए।‘

लावारिस लाशें दफनाने में नियमों को नजरअंदाज किया गया धर्मस्थल के जंगल में मिलने वाली लाशों की पहचान को लेकर आज भी सवाल कायम है। उन लाशों की डिटेल और आंकड़े धर्मस्थल पुलिस थाने में नहीं हैं। हमने थाने में ड्यूटी अफसर से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि हम इस बारे में बात नहीं कर सकते। न ही कोई डेटा बता सकते हैं। पूरे केस की जांच SIT कर रही है।
इसके बाद हम RTI एक्टिविस्ट जयंत टी. से मिले। वो धर्मस्थल में ही रहते हैं। उन्होंने ही धर्मस्थल ग्राम पंचायत ऑफिस में RTI डाली थी। उन्होंने डिटेल मांगी थी कि 1996 से लेकर 2015 के बीच धर्मस्थल ग्राम पंचायत के एरिया में कितनी लाशें मिलीं। क्या उनकी पहचान हुई। लाश कब मिली। कब दफनाया गया। उस पर कितने रुपए खर्च किए गए।
जयंत के इन सवालों के बाद ही उन्हें 160 डेडबॉडी की लिस्ट मिली। हर डेडबॉडी को दफनाने का पूरा रिकॉर्ड भी मिला। इससे एक बात तो साफ हो गई कि इन 20 सालों में धर्मस्थल में मिलने वाली इतनी लाशों का रिकॉर्ड है।

धर्मस्थल ग्राम पंचायत ऑफिस में RTI के जरिए 160 लावारिस लाशों का रिकॉर्ड मिला था।
अब सवाल ये था कि इन लाशों को दफनाया कब गया। इसके जवाब में जयंत धर्मस्थल पंचायत से मिली जानकारी के मुताबिक हमें बताते हैं, ‘इन लाशों को मिलने के 12 से 24 घंटे के अंदर ही दफना दिया गया। इसके लिए बाकायदा पुलिस की अनुमति भी ली गई है। दफनाने के लिए हर लाश पर पंचायत ने औसतन 750 रुपए खर्च भी किए। इसका पूरा रिकॉर्ड है।‘
लावारिस लाशों की पहचान कराने के लिए क्या कदम उठाए गए। इसे लेकर पंचायत की तरफ से लाशों की फोटोग्राफी कराने और उन पर खर्च करने का ब्योरा दिया गया। हालांकि, फोटोग्राफी के बाद क्या उसका मीडिया में प्रचार-प्रसार किया गया। कहां और किन-किन थानों में पोस्टर लगाकर पहचान कराने की अपील की गई। इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है।

लॉज में लड़की की लाश, सड़क पर युवक की लाश, लावारिस दफनाया धर्मस्थल ग्राम पंचायत से मिले रिकॉर्ड में एक सनसनीखेज जानकारी मिली है। इस बारे में जयंत ने कुछ दस्तावेज भी दिखाए। वो कहते हैं कि 6 अप्रैल 2010 को धर्मस्थल के एक लॉज में लड़की की लाश मिली थी। लॉज से कुछ दूर खाली जगह पर एक युवक की भी लाश मिली थी।
जयंत आगे बताते हैं, ‘डॉक्यूमेंट के आधार पर ये पता चला कि युवती की मौत के मामले में हत्या का केस दर्ज हुआ। उसमें सबूत मिटाने की धारा भी जोड़ी गई। जबकि युवक की मौत के केस को अननेचुरल डेथ माना गया। यहां तक तो कानूनी तौर पर सब सही है, लेकिन इन दोनों लाशों के बारे में लिखा है कि इनकी पहचान नहीं हो सकी।‘

‘दूसरा सबसे बड़ा सवाल ये है कि दोनों ही लाशों को 24 घंटे के अंदर ही दफना दिया गया। रिकॉर्ड में लिखा है कि ये लाश 6 अप्रैल 2010 को मिली। वहीं इसे दफनाने की तारीख 7 अप्रैल 2010 दर्ज है। जबकि नियम है कि पहचान कराने के लिए कम से कम 72 घंटे मॉर्च्युरी में रखना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।‘
मर्डर केस की जांच हेड कॉन्स्टेबल को सौंपी इसे समझने के लिए हमने कर्नाटक पुलिस में सब इंस्पेक्टर रहे गिरीश मट्टन से बात की। वो कहते हैं कि सभी राज्यों में लावारिस लाशों को दफनाने का नियम-कानून है। लाश की पहचान के लिए कम से कम उसे 3 दिन तक मॉर्च्युरी में रखना चाहिए। जिससे कोई परिचित तलाश करते हुए या पुलिस वहां तक पहुंच जाए।
आसपास के पुलिस थानों में लाश की फोटो भी भेजी जानी चाहिए। मीडिया में प्रचार करना होता है। कई बार विशेष परिस्थिति में फ्रीजर होने पर लावारिस लाश को 15 दिनों तक भी मॉर्च्युरी में रखा जाता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। कुछ ऐसे केस भी मिले, जिनमें लाश मिलने के बाद उसी दिन दफना दिया गया।
गिरीश धर्मस्थल ग्राम पंचायत के रिकॉर्ड से मिली जानकारी पर एक और बड़ा सवाल उठाते हैं। वो कहते हैं, ‘अगर किसी भी केस में हत्या का मामला दर्ज होता है तो उसकी जांच कम से कम इंस्पेक्टर रैंक का पुलिस अधिकारी ही करता है। वही उस लाश का डिस्पोजल भी कराता है।‘
‘धर्मस्थल में मिली कई लावारिस लाशों में हेड कॉन्स्टेबल रैंक के पुलिसकर्मी के ही साइन हैं।‘

ये बड़ा अपराध, सबूत मिटाने के मामले में एक्शन जरूरी इसे और बारीकी से समझने के लिए हमने यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह से बात की। उनसे हमने पूछा कि अगर कोई लावारिस लाश मिलती है तो उसकी पहचान के लिए क्या नियम कानून है। क्या किसी लाश के मिलने पर उसे 12 से 24 घंटे के अंदर ही दफनाया जाना सही है।
इस पर डॉ. विक्रम सिंह कहते हैं, ‘ये नियमों का उल्लंघन है। अगर वाकई में डॉक्यूमेंट में ऐसी गड़बड़ी सामने आई है तो ये सीधे सबूतों को नष्ट करने का केस बनता है। पहले की IPC और अब नए कानून BNS में भी इसे दंडनीय अपराध माना गया है। इसमें सिर्फ विभागीय कार्रवाई ही नहीं, बल्कि आपराधिक मामला दर्ज करके भी एक्शन लेने की जरूरत है।‘
‘ये बहुत बड़ा अपराध है। इसकी जांच कर ऐसे आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए क्योंकि आजाद भारत में पुलिस जांच में इससे बड़ी अनदेखी नहीं हो सकती है। इसमें अपराध और अपराधी दोनों को छिपाया गया। जिस मर्डर केस की बात कर रहे हैं, उसमें इसी लापरवाही की वजह से आरोपी नहीं पकड़े जा सके।‘
‘इस तरह के केसेज में पोस्टमॉर्टम के दौरान वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी भी होनी चाहिए। हत्या वाले केस में उसकी पहचान कराने के लिए नियमों की अनदेखी करना भी एक बड़ा अपराध है। इस एंगल पर भी SIT को तुरंत जांच करने की जरूरत है।‘
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दुपट्टे के सहारे हाथ पेड़ से बांध दिए। शरीर पर 14 से ज्यादा जगहों पर चोट के निशान थे। प्राइवेट पार्ट में गहरी चोट थी। रेपिस्ट का DNA न मिले इसलिए उसके प्राइवेट पार्ट में गीली मिट्टी भर दी गई थी। ये वारदात 9 अक्टूबर 2012 को कर्नाटक के मैंगलुरु से 80 किमी दूर धर्मस्थल के जंगलों में अंजाम दी गई थी। हालांकि, तब ये दुनिया की नजरों में नहीं आई। अब पिछले एक महीने से धर्मस्थल में सैकड़ों लाशें दफन होने के दावों के बीच ये केस फिर चर्चा में है। पढ़िए पूरी खबर…