
‘भीमराव अंबेडकर सिर्फ एक साधारण इंसान हैं, कोई महापुरुष नहीं। संविधान निर्माता तो बिल्कुल नहीं। और वो तो दलित भी नहीं। उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। इसलिए उनके बारे में कुछ कहने पर मेरे ऊपर SC/ST एक्ट नहीं लगता।’
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ग्वालियर के एडवोकेट अनिल मिश्रा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान निर्माता के दर्जे पर ही नहीं, बल्कि उनकी दलित पहचान पर भी सवाल उठा रहे हैं। डॉ. अंबेडकर पर अपमानजनक टिप्पणी करने के बाद वे सोशल मीडिया पर चर्चित हो गए। इसके बाद भी लगातार बयान दे रहे हैं।
एडवोकेट मिश्रा SC/ST एक्ट को अंधा कानून बताते हैं और जिन लोगों पर ये एक्ट लगा है, उनके केस फ्री में लड़ने की बात कहते हैं। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में डॉ. अंबेडकर की मूर्ति लगाने का विरोध कर चुके हैं। उन्हें अंग्रेजों का एजेंट बता चुके हैं। आखिर उनका मकसद क्या है, बैकग्राउंड क्या है और वे क्यों डॉ. अंबडेकर पर सवाल उठा रहे हैं, इस पर हमने उनसे बात की।
सवाल: डॉ. अंबेडकर की मूर्ति से आपको क्यों दिक्कत हुई? जवाब: हाईकोर्ट का कोई स्पेसिफिक ऑर्डर नहीं था कि कोर्ट परिसर में भीमराव अंबेडकर की मूर्ति लगे। ऐसे काम के लिए ऑर्डर की जरूरत होती है। बिना ऑर्डर लिए कुछ लोग चंदा करके हाईकोर्ट में मूर्ति लगाने आ गए। बिना ऑर्डर के तो मूर्ति लग नहीं सकती। मैंने इस बारे में सिर्फ बयान नहीं दिया, PMO को भी लेटर लिखा था।

सवाल: डॉ. अंबेडकर संविधान निर्माता हैं, आप इसे किस आधार पर चुनौती दे रहे हैं? जवाब: देखिए कोई सच सामने आ जाए, तो उसे स्थापित करना चाहिए। मैंने बहुत किताबें पढ़ीं, आर्टिकल पढ़े। अंबेडकर को भी पढ़ा। तब मैं ये कह रहा हूं कि संविधान निर्माता बीएन राव हैं, अंबेडकर नहीं।
60 देशों का दौरा बीएन राव ने किया था, ताकि सभी देशों के संविधान की कंपैरेटिव स्टडी कर सकें। बीएन राव को ये काम तब दिया गया था, जब संविधान सभा बनी भी नहीं थी। अंबेडकर तो संविधान सभा के सदस्य बने, तब संविधान से जुड़े। फिर वे निर्माता कैसे हो सकते हैं।
जो व्यक्ति संविधान के लिए 60 देशों का दौरा करे, कंपरैटिव स्टडी करे और इसके बाद किसी और व्यक्ति की एंट्री हो, तो निर्माता कौन होगा, पहले वाला या दूसरा वाला।

संविधान एक्सपर्ट्स के मुताबिक और मैंने जितना पढ़ा है, अंबेडकर जी ने संविधान के एक भी आर्टिकल का निर्माण नहीं किया है। मैंने AI से भी पूछा कि अंबेडकर ने संविधान के किसी भी आर्टिकल का निर्माण किया है क्या? जवाब मिला, नहीं।
इस मुद्दे पर अब तक कई किताबें आ चुकी हैं। 1963 में पब्लिश ‘इंडिया कॉन्स्टिट्यूशन इन द मेकिंग’ जैसी किताब बहुत ऑथेंटिक तरीके से बताती है कि संविधान वास्तव में किसने लिखा था। मेरे पास सर बीएन राव के तैयार ड्राफ्ट की सर्टिफाइड कॉपी भी है। अंबेडकर ने अपनी किताब में ये कहा है कि वे इस संविधान से सहमत नहीं थे, फिर इसके निर्माता कैसे हो गए।
मैं बहस के लिए तैयार हूं। अपनी बात साबित करने के लिए मेरे पास सारे तर्क हैं, लेकिन बहस फेयर तरीके से हो। गाली-गलौज के साथ नहीं, जैसा आजकल चल रहा है। ये बहस तो संसद में भी होनी चाहिए। ये पूरे देश का विषय है। मुझे रोज हजारों गालियां और हत्या की धमकियां मिलती हैं। रोज फोन बंद करके सोना पड़ता है। इन सबसे मुझे फर्क नहीं पड़ता।
सवाल: लेकिन अभी ये बहस क्यों? जवाब: मेरा विरोध उस दिन से शुरू नहीं हुआ जिस दिन मैंने हाईकोर्ट में मूर्ति लगने का विरोध किया। मैं कई साल से इस मुहिम में लगा हूं। मीडिया ने इस मुद्दे को अब उठाया है। मेरी मंशा वायरल होने की न थी और न अभी है। मीडिया कवर करेगी तब भी, और नहीं करेगी तब भी मैं इस सच को कहता रहूंगा। मैं तो इस बहस को लगातार कर रहा हूं। बस मीडिया की एंट्री ने इसे वायरल कर दिया।

सवाल: SC/ST एक्ट को अंधा कानून कहने की वजह क्या है? जवाब: इस एक्ट की वजह से कितने ही फर्जी मुकदमे सनातनियों, जनरल और ओबीसी कैटेगरी के लोगों पर हो रहे हैं। अगर इसका डेटा सर्च करेंगे तो पता चलेगा कि देशभर में इस एक्ट के तहत किए केस में 90% लोग बरी होते हैं।
देखिए ये लोग क्या करते हैं। अपने घर की महिलाओं को थाने के बाहर बैठा दिया, थाना घेर लिया और केस कर दिया। SC-ST एक्ट के तहत FIR दर्ज कराने पर ही कथित पीड़िता को 25 से 50% तक पैसा मिल जाता है। फिर चार्जशीट दाखिल होने पर 25 से 50% के बीच पैसा मिलता है। बाकी आरोप सिद्ध होने पर पैसा मिलता है।
अगर कोई सच में पीड़ित है, तो उसे सरकारी पैसा मिलना चाहिए, लेकिन उन केस का क्या जिसमें आरोपी बाद में बरी हो जाता है। ये पैसा रिकवर करने का कोई प्रावधान क्यों नहीं है। ये पैसा किसका है। जनता का ही है न।
दूसरी तरफ आरोपी को बरी होने के बाद कोई हर्जाना नहीं मिलता। उसकी नौकरी, कामकाज सब ठप हो जाता है। उसके परिवार की इमेज को नुकसान होता है। सरकार उसकी क्षतिपूर्ति नहीं करती।
मैंने मध्यप्रदेश का एक डेटा तैयार किया है। मैं इसे जल्द लेकर आऊंगा। इस डेटा में सारे SC-ST एक्ट के सारे केस दर्ज होंगे। ये भी होगा कि कितने आरोपियों पर आरोप सिद्ध हुआ, कितने बरी हुए। ये डेटा देखकर लोग चौक जाएंगे। ये भी बताऊंगा SC-ST एक्ट के तहत कितना पैसा अब तक कथित तौर पर पीड़ित पक्ष को मिला।
सवाल: आप कहते हैं कि एक नहीं हजार केस कर दो, मैं नहीं डरता। क्या आपको कानून का डर नहीं है? जवाब: मैं क्यों डरूंगा। मुझे अब सरकारी नौकरी तो चाहिए नहीं, न ही सरकार से कोई फायदा चाहिए। केस होगा तो कुछ दिन जेल में रहूंगा और वापस आ जाऊंगा।

मैं जो भी बोल रहा हूं, वो राइट टू स्पीच के तहत कह रहा हूं। मैं इस अधिकार के तहत तो प्रधानमंत्री की नीतियों को भी गलत कह सकता हूं। उन्हें सही या गलत कह सकता हूं। मुझ पर कोई FIR ठहरेगी ही नहीं।
एक और बात कि भीमराव अंबेडकर पर कुछ बोलने पर मेरे ऊपर SC-ST एक्ट तो बिल्कुल नहीं लगेगा क्योंकि वे दलित नहीं थे। वे तो बौद्ध हो गए थे। उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ दिया था। बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद वे दलित नहीं रहे। इस इस एक्ट के तहत कोई FIR मुझ पर नहीं हो सकती।
सवाल: आप डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे महापुरुष पर सवाल उठा रहे हैं, डर नहीं लगता? जवाब: जो लोग उन्हें मान्यता देते हैं, भीमराव उनके लिए महापुरुष हो सकते हैं। मैं उन्हें सिर्फ एक साधारण व्यक्ति मानता हूं। हमारे राष्ट्र ने भी उन्हें किसी जगह संविधान निर्माता परिभाषित नहीं किया है। इस तरह की कोई घोषणा लिखित में नहीं है।
मुझे रातभर फोन आते हैं। मैंने अब फोन बंद करके सोना शुरू कर दिया है। रोज हत्या की धमकियां और गालियां मिलती हैं। मेरे परिवार और दोस्तों को भी लगातार फोन आ रहे हैं। मैं बहुत साधारण बैकग्राउंड से हूं। पिता डॉक्टर थे। मैं वकील हूं। बच्चे भी आगे वकील बनेंगे। बार एसोसिएशन का पूर्व अध्यक्ष हूं।
मैं किसी बैकग्राउंड की वजह से ये सब नहीं कर रहा हूं। बल्कि मैं जानता हूं कि मेरे ऊपर कोई ठोस केस बनेगा ही नहीं। बोलने का अधिकार हमारे संविधान ने दिया है।

सवाल: पूर्व जस्टिस अरुण मिश्रा से आपका रिश्ता जोड़ा जाता है, क्या ये सच है? जवाब: वे मेरे गुरु हैं। मैंने उनके अंडर 1988 से लेकर 1999 तक प्रैक्टिस की है। मैं उनका रिश्तेदार नहीं, शिष्य हूं। सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाया जा रहा है। जिन्हें लगता है कि मेरे पीछे कोई पॉलिटिकल बैकिंग है, तो वे गलत हैं। मेरा बैकग्राउंड पॉलिटिकल नहीं है।
उनसे (अरुण मिश्रा) मेरी बातचीत होती है। तीज-त्योहार में तो जरूर बात होती है। ये मामला अचानक इतना फैल गया कि बात करने का मौका ही नहीं मिला। उन्हें आपत्ति होती तो शायद वे मुझसे जरूर बात करते। अब तक तो उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई।
सोशल मीडिया पोस्ट से शुरू हुआ विवाद एडवोकेट अनिल मिश्रा से जुड़े विवाद की शुरुआत 5 अक्टूबर को हुई। ग्वालियर क्राइम ब्रांच की सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टीम को एक वॉट्सएप ग्रुप में आपत्तिजनक वीडियो दिखा। इस पोस्ट में डॉ. अंबेडकर को अंग्रेजों का एजेंट बताया गया था। पोस्ट के साथ एक फोटो भी थी, जिसके साथ छेड़छाड़ की गई थी। इसके बाद अनिल मिश्रा का विरोध शुरू हो गया।
क्राइम ब्रांच ने जांच शुरू की। पता चला कि ये कंटेंट अनिल मिश्रा के मोबाइल नंबर से अपलोड हुआ था। इसके बाद पुलिस ने केस दर्ज कर लिया। FIR के मुताबिक, यह कार्रवाई जिला कलेक्टर और मजिस्ट्रेट की ओर से 2023 में जारी आदेश के उल्लंघन के तहत की गई।
ग्वालियर कलेक्टर एवं डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि जिले की सीमा में ऐसा कोई भी काम, पोस्टर, वीडियो या सोशल मीडिया एक्टिविटी नहीं की जाएगी, जिससे सामाजिक, धार्मिक या सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़े। …………………………… ये खबर भी पढ़ें तिरुपति लड्डू विवाद, जानवर की चर्बी, मिलावटी घी से हवाला तक

आंध्र प्रदेश के तिरुमला तिरुपति देवस्थानम यानी TTD में चढ़ाए जाने वाले लड्डू प्रसाद पर विवाद बढ़ता जा रहा है। अब SIT जांच में ये खुलासा हुआ है कि मंदिर के प्रसाद में बीते 5 साल के अंदर लगभग 68 लाख किलो मिलावटी घी का इस्तेमाल हुआ। इसे सप्लाई करने वाली उत्तराखंड की भोलेबाबा डेयरी ने 2019 से 2024 तक 250 करोड़ रुपए का नकली घी मंदिर को भेजा। पढ़िए पूरी खबर…