
किराये के सॉफ्टवेयर से ट्रेनों के टिकट बुक हो रहे हैं। ये सॉफ्टवेयर महज 50 सेकेंड में तत्काल का टिकट बुक कर देते हैं, यानी जितनी देर में कोई यात्री IRCTC के ऐप पर लॉगिन करेगा, उतनी देर में इस सॉफ्टवेयर से टिकट कंफर्म हो जाएगा।
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भास्कर रिपोर्टर ने एजेंट बनकर गिरोह से संपर्क किया। दलाल ने न सिर्फ 50 सेकेंड में ऐसे एक सॉफ्टवेयर से दिल्ली से पटना का टिकट बुक कर दिया, बल्कि रिपोर्टर को सॉफ्टवेयर चलाने की ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दी।
सॉफ्टवेयर डेवलपर तैयार करते हैं, टिकट बुक करने का काम एजेंट्स का है। सॉफ्टवेयर का 1200 रुपए से लेकर 3200 रुपए तक मासिक किराया है।
जांच एजेंसियों को झांसा देने के लिए सॉफ्टवेयर बेचने वाले दलाल टिकट बेचने वाले दलालों को आईपी एड्रैस भी मुहैया कराते हैं। जिसकी कीमत प्रति आईपी 600 रुपए है। आईपी एड्रेस अलग होने से एजेंट्स पकड़ में नहीं आते।
भास्कर इन्वेस्टिगेशन में खुलासा हुआ कि, टेसला, गदर , ब्रह्मोस, सुपर तत्काल, अवेंजर नाम से ऑनलाइन सॉफ्टवेयर मिल रहे हैं। टेसला, गदर और अवेंजर को ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है।

एजेंट ने रिपोर्टर को सॉफ्टवेयर की ऑनलाइन ट्रेनिंग दी
यूट्यूब पर तमाम वीडियो खंगालने के बाद हमें बलराम नाम के एजेंट की लिंक मिली। हमने उससे कहा कि, ‘हम तत्काल टिकट बुकिंग का काम शुरू करना चाहते हैं। भरोसा होने के बाद एजेंट ने पूरी प्रॉसेस समझाई और ऑनलाइन ट्रेनिंग दी। आमने–सामने मिलने से इंकार कर दिया।’
रिपोर्टर : तत्काल टिकट बुकिंग वाले सॉफ्टवेयर को लेकर बात हुई थी, कैसे मिलेगा
एजेंट : हार्ड रूट चाहिए या सॉफ्ट रूट
रिपोर्टर: ये क्या होता है
एजेंट: हार्ड रूट में 55 से 60 सेकेंड में टिकट बुक होता है। सॉफ्ट रूट में टोकन या आईपी की जरूरत नहीं होती, लेकिन दो मिनट का प्रीमियम टाइम चाहिए
रिपोर्टर: तत्काल टिकट एक मिनट में खत्म हो जाता है
एजेंट: इसलिए टेसला या गदर सॉफ्टवेयर लेना होगा
रिपोर्टर: इसके लिए और क्या चाहिए होगा
एजेंट: आईपी और सॉफ्टवेयर दोनों लेना होंगे
रिपोर्टर: कैसे मिलेंगे
एजेंट: अल्ट्रा व्यूवर दीजिए, मैं रिमोट से इंस्टॉल कर दूंगा
रिपोर्टर: सॉफ्टवेयर की कीमत कितनी है
एजेंट: 1800 रुपए
रिपोर्टर: आईपी का क्या रेट है
एजेंट: एक आईपी 1000 रुपए का है
रिपोर्टर: सस्ता आईपी नहीं चलेगा
एजेंट: 400–500 वाला आईपी जल्दी ब्लॉक हो जाता है
रिपोर्टर: एक आईडी से कितने टिकट बनेंगे
एजेंट: एक आईडी से छह फॉर्म
रिपोर्टर: क्या आप नया IRCTC लॉगिन देंगे
एजेंट: कस्टमर का ही लॉगिन बना लेना
रिपोर्टर: यानी कस्टमर का आईडी–पासवर्ड इस्तेमाल करना है
एजेंट: हां, उसी से टिकट बनाना है
रिपोर्टर: आगे मुझे क्या करना होगा
एजेंट: अल्ट्रा व्यूवर दीजिए, मैं सब इंस्टॉल कर के समझा दूंगा
एंटीवायरस हटाने की बातचीत
एजेंट: सर जी, क्या मैं इसे अनइंस्टॉल कर दूं
रिपोर्टर: क्या अनइंस्टॉल कर रहे हैं
एजेंट: ट्रेंड माइक्रो सिक्योरिटी एजेंट
रिपोर्टर: ये तो एंटीवायरस है, इसे हटाना नहीं चाहिए
एजेंट: इससे कोई वायरस प्रोटेक्शन नहीं होता
रिपोर्टर: फिर क्यों हटाना है
एजेंट: ये पुलिस है, हमारा सॉफ्टवेयर चोर। ये रहेगा तो वो काम नहीं करेगा
रिपोर्टर: एंटीवायरस रहने से सॉफ्टवेयर नहीं चलेगा
एजेंट: हां, एंटीवायरस होने से टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर काम नहीं करता
टेसला सॉफ्टवेयर और टोकन प्रक्रिया
एजेंट: आपको टेसला चाहिए ना, जिससे बुकिंग तेज होती है
रिपोर्टर: हां
एजेंट: हर दिन टोकन जनरेट करना पड़ेगा, नहीं तो काम नहीं होगा
रिपोर्टर: टोकन कैसे
एजेंट: रोज IRCTC साइट खोलकर टोकन जनरेट करना होगा।
रिपोर्टर: बिना टोकन काम नहीं चलेगा
एजेंट: नहीं। अवेंजर में सिर्फ एक-दो फॉर्म बनेंगे, डेढ़ मिनट में टिकट खत्म हो जाता है
रिपोर्टर: ठीक है
एजेंट: टेसला और आईपी लो, डेली टोकन बनाना पड़ेगा
रिपोर्टर: प्रोसेस समझा दोगे
एजेंट: वीडियो भेज दूंगा
रिपोर्टर: शुरू में हेल्प कर देना।
एजेंट: हां, लेकिन डेली टोकन आपको ही बनाना होगा
रिपोर्टर: फोन को लेकर कोई शर्त
एजेंट: एंड्रॉयड फोन होना चाहिए। आईफोन में फाइल डाउनलोड नहीं होगी
IRCTC लॉगिन को लेकर
रिपोर्टर: क्या आप IRCTC लॉगिन आईडी भी देते हैं
एजेंट: वो अलग चीज है, उसके पैसे लगते हैं
रिपोर्टर: पैसे लेकर दिलवा सकते हो
एजेंट: हां, लेकिन अलग से चार्ज लगेगा।
फर्जी लॉगिन, मोबाइल नंबर और OTP
रिपोर्टर: अगर लॉगिन खरीदेंगे तो मोबाइल नंबर कहां से आएगा
एजेंट: IRCTC आईडी में जो नंबर रहता है, वो मत डालिए
रिपोर्टर: फिर क्या डालना है
एजेंट: कोई अनजान, बंद पड़ा नंबर डाल दिया जाता है ताकि कभी जांच हो तो कुछ न मिले
रिपोर्टर: टिकट कैसे देंगे
एजेंट: आईडी से निकाल कर प्रिंट दे दीजिए
रिपोर्टर: मोबाइल पर मैसेज नहीं आएगा
एजेंट: नहीं आएगा
रिपोर्टर: ये आईडी कैसे बनती हैं
एजेंट: मशीन से बनी टेम्परेरी और आधार वाली आईडी होती हैं
रिपोर्टर: प्रीमियम ट्रेन में OTP आ रहा है, उसका क्या
एजेंट: अभी OTP बायपास नहीं है, मैन्युअली डालना पड़ेगा
रिपोर्टर: मतलब कस्टमर को फोन पर रखना होगा
एजेंट: हां, OTP वही बताएगा
सेकेंड्स में बुक हुआ टिकट…
एजेंट ने सबसे पहले सिस्टम पर अल्ट्रा व्यूवर डाउनलोड करने को कहा। (अल्ट्रा व्यूवर की मदद से किसी का भी सिस्टम रिमोट पर लिया जा सकता है)
अल्ट्रा व्यूवर डाउनलोड करने के बाद पासवर्ड शेयर करने के लिए कहा। फिर बलराम ने हमारे सिस्टम में सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया।
सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने से पहले बलराम ने हमारे लैपटॉप से एंटी वायरस को डिलीट किया।
फिर रिपोर्टर को ऑनलाइन टेसला सॉफ्टवेयर से तत्काल टिकट बुक करने की ट्रेनिंग दी।
हमने बलराम को कहा कि वो हमें एक टिकट बुक कर के दिखाए, क्योंकि हम देखना चाहते थे कि टेसला सॉफ्टवेयर से कैसे टिकट बुक किया जा रहा है।
काफी मशक्कत के बाद बलराम ने टेसला सॉफ्टवेयर से एक टिकट बुक करके दिखाया। टिकट बुकिंग के लिए IRCTC का ऐप खोला भी नहीं गया फिर भी तत्काल टिकट बुक हो गया।

सवाल उठता है कि IRCTC ने अपने हर यूजर के लिए आधार कार्ड जरूरी कर रखा है तो दलालों के पास इतने IRCTC के लॉगिन पासवर्ड कहां से आते हैं।
बलराम ने बताया कि एक लॉगिन आईडी की कीमत साढ़े तीन सौ रुपए है जितने चाहो आप ले सकते हैं।
बलराम ने हमें एजेंट अभिजीत का नंबर दिया। अभिजीत टेसला और गदर से टिकट बुकिंग का काम करता है। हमने पूछा की फेक लॉगिंग आईडी के लिए नंबर कहां से लाते हो, तो उसने बताया कि पीछे से लॉगिन आईडी बनाकर दिया जाता है।
टिकट बुक करते समय ऐसे नंबर का इस्तेमाल किया जाता है जो बंद हो गया हो, ग्राहक को बस लॉगिंग आईडी से टिकट प्रिंट करके देना है।
ऐसे बुक किये गए तत्काल टिकट का मैसेज नहीं आता है क्योंकि बुकिंग में गलत नंबर डाला जाता है जिससे अगर कभी IRCTC जांच भी करे तो गलत नंबर के कारण पकड़े जाने का डर नहीं होता।



रेलवे ने पहचान जनवरी 2025 से अब तक: 3.03 करोड़ पर्सनल यूजर आईडी संदिग्ध मानकर इनएक्टिव किए। 2.69 करोड़ यूजर आईडी अस्थायी रूप से सस्पेंड कर री-वेलिडेशन में डाली गईं
कोडिंग के आधार पर ट्रेनों और स्टेशन को बांटा
अवैध तरीके से ऑनलाइन मिल रहे इन सॉफ्टवेयर के जरिए कुछ ही सेकेंड्स में सीटें एजेंट्स के पास चली जाती हैं। आम यात्रियों को टिकट नहीं मिल पाता।
एजेंट्स ने हार्डरूट और सॉफ्टरूट में शहरों को बांट रखा है। जिस रूट में सबसे ज्यादा टिकट का डिमांड होता है उसे हार्ड रूट कहा जाता है। जैसे दिल्ली-पटना, दिल्ली-दरभंगा, दिल्ली-कटिहार, दिल्ली- गोरखपुर, दिल्ली-मुंबई , दिल्ली-बंगलोर आदि।
वहीं, जिस रूट में टिकट आसानी से मिल जाता है, उसे सॉफ्टरूट कहते हैं, जैसे- दिल्ली-कानपुर, दिल्ली- भोपाल, दिल्ली-जयपुर आदि।
कोडिंग ट्रेन के आधार पर भी की गई है जो ट्रेन कम समय में दूरी तय करती है उस ट्रेन को भी हार्डरूट ट्रेन कहा जाता है। जैस- सम्पूर्ण क्रांति एक्सप्रेस , पूर्व एक्सप्रेस , सभी रूट की संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, सभी रूट की गरीब रथ , भोपाल एक्सप्रेस, चेन्नई एक्सप्रेस, गोवा एक्सप्रेस, स्लीपर वाली दुरंतों एक्सप्रेस।
हार्ड रूट में तत्काल बुकिंग के लिए दलालों ने अलग से सॉफ्टवेयर बना रखा है टेसला, गदर , ब्रह्मोस, सुपर तत्काल और सॉफ्टरूट के लिए अवेंजर नाम से सॉफ्टवेयर ऑनलाइन मिल रहे है।
हार्डरूट के साफ्टवेयर का किराया 1800 से लेकर 3200 रुपए जबकि सॉफ्ट रूट के लिए अवेंजर का किराया 1200 रुपए प्रति महीना है।
जांच एजेंसियों को झांसा देने के लिए ये सॉफ्टवेयर बेचने वाला दलाल टिकट बेचने वाले दलाल को आईपी एड्रैस भी मुहैया कराते हैं। जिसकी कीमत प्रति आईपी 600 रुपए है।
ये सॉफ्टवेयर कुछ ही सेकेंड्स में प्रॉसेस पूरी कर देते हैं
आईटी एक्सपर्ट हेमंत शर्मा कहते हैं कि, ‘आम यात्रियों के साथ ट्रेन टिकट बुकिंग में दो लेवल पर गड़बड़ी की जा रही है। पहला, ऑटोमेशन और AI-बेस्ड सॉफ्टवेयर का मिसयूज और दूसरा, एजेंटों द्वारा इन सॉफ्टवेयरों का कमर्शियल यूज।’
‘जब कोई यात्री IRCTC वेबसाइट या ऐप पर मैन्युअली टिकट बुक करता है, तो उसे लॉग-इन, ट्रेन चयन, यात्री विवरण, कैप्चा और पेमेंट जैसी प्रॉसेस खुद पूरी करनी होती हैं। इसी दौरान हजारों-लाखों यूजर एक साथ सिस्टम पर एक्टिव रहते हैं, खासकर तत्काल और ARP बुकिंग के समय। इसमें अधिकांश यात्रियों को टिकट नहीं मिल पाता।’
‘इसके उलट, एजेंटों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे ऑटोमेशन/AI सॉफ्टवेयर वही पूरी प्रॉसेस सेकेंड्स में पूरी कर देते हैं। यह सॉफ्टवेयर आम यूजर के कम्पेरिजन में कई गुना तेजी से सर्वर को रिक्वेस्ट भेजते हैं। इसी कारण आम यात्री मैन्युअल प्रक्रिया में फंसा रहता है, वहीं दूसरी ओर सॉफ्टवेयर बेस्ड सिस्टम पहले ही टिकट बुक कर लेता है।’
जांच में यह भी सामने आया है कि एजेंट इन टिकटों को अतिरिक्त शुल्क जोड़कर उन यात्रियों को बेचते हैं जो ज्यादा पैसा देने को तैयार होते हैं। जबकि रेलवे की टिकट नीति ‘पहले आओ, पहले पाओ’ (First Come, First Serve) की है।
रेलवे इन सॉफ्टवेयरों पर रोक क्यों नहीं लगा पा रही है?
इसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण सामने आते हैं। पहला, कानूनी खामी। ऑटोमेशन और एआई बेस्ड टिकट बुकिंग सॉफ्टवेयर को लेकर फिलहाल कोई सख्त कानून नहीं है, जो इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित करे। मौजूदा आईटी और रेलवे नियम इसे आंशिक तौर पर ही कवर करते हैं, जिससे सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती।
दूसरा, तकनीकी। भारतीय रेलवे अपने लेवल पर असामान्य गति से टिकट बुक करने वाले IP एड्रेस को पहचानकर ब्लॉक करती है। लेकिन एजेंट लगातार नए IP एड्रेस, VPN, नई यूज़र आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल करते हैं। IP एड्रेस असीमित हैं, इसलिए पकड़ में नहीं आते।
इसका नतीजा यह है कि एजेंट और सॉफ्टवेयर डेवलपर लगातार सिस्टम को बायपास करने के नए तरीके खोज रहे हैं और अवैध कमाई कर रहे हैं। वहीं आम यात्रियों को टिकट के लिए ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है।
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ये खुलासा दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की रिपोर्ट से हुआ है, जिसकी कॉपी भास्कर के पास है। 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किला के पास ब्लास्ट करने वाला आतंकी डॉ उमर नबी भी यहां प्रोफेसर था। पूरी खबर पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें…।