Kashmir Pahalgam Attack; Baisaran Valley Ground Workers | Terrorists | दिखने में आम कश्मीरी, लेकिन आतंकियों के मददगार ओवरग्राउंड वर्कर: महिलाएं-बच्चे भी शामिल, ये हैं आतंकियों के आंख-कान; कौन हैं, कैसे काम करते हैं


‘वे दुकानदार हो सकते हैं, खच्चर चराने वाले हो सकते हैं, पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर हो सकते हैं, पुलिसवाले भी हो सकते हैं। आपको पता भी नहीं चलेगा कि आम कश्मीरियों की तरह दिखने वाला कोई शख्स आतंकियों का मददगार हो सकता है। अगर भगवान ओवर ग्राउंड वर्कर्स को

.

39 साल सेना में रहे रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी लंबे अरसे तक साउथ कश्मीर में पोस्टेड रहे हैं। वे जिन ओवर ग्राउंड वर्कर्स के बारे में बता रहे हैं, वे जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की आंख और कान हैं।

22 अप्रैल को पहलगाम की बायसरन घाटी में 3 आतंकी 26 टूरिस्ट का कत्ल कर गायब हो गए, इसकी वजह यही ओवर ग्राउंड वर्कर्स हैं। यानी वे लोग जो आतंकियों को खाना-पीना, ठिकाना और बाकी जरूरी चीजें मुहैया कराते हैं।

दैनिक भास्कर ने संजय कुलकर्णी के अलावा PoK में ट्रेनिंग लेने वाले और अब आतंक का रास्ता छोड़ चुके एक शख्स से बात की। उनसे 5 सवाल पूछे-

1. ओवर ग्राउंड वर्कर्स कौन होते हैं और कैसे काम करते हैं?

2. उन्होंने पहलगाम हमले में आतंकियों की कैसे मदद की?

3. रेकी में कैसे ओवर ग्राउंड वर्कर्स का इस्तेमाल किया गया?

4. आतंकियों की मदद करने पर बदले में उन्हें क्या मिलता है?

5. पाकिस्तान से आने वाले आतंकी ओवर ग्राउंड वर्कर्स से कैसे कॉन्टैक्ट करते हैं?

पहले जानिए पहलगाम हमले में ओवर ग्राउंड नेटवर्क से मदद मिलने की बात क्यों आ रही है…

1. अटैक से पहले आतंकियों ने कई टूरिस्ट स्पॉट जैसे बेताब घाटी, अरु घाटी और एम्यूजमेंट पार्क की रेकी की थी। ये रेकी ओवर ग्राउंड वर्कर्स की मदद से ही की गई। सुरक्षा एजेंसियों ने 20 से ज्यादा ओवर ग्राउंड वर्कर्स को संदिग्ध माना है। आतंकियों ने उन्हें अलग-अलग टास्क दिए थे।

2. बायसरन घाटी में हुए अटैक में 4 ओवर ग्राउंड वर्कर थे, जिन्होंने आतंकियों की मदद की। रेकी करने से लेकर लॉजिस्टिक सपोर्ट देने में उनकी भूमिका रही। इसी वजह से आतंकी हमला करके आसानी से भाग निकले। अब तक उनकी सटीक लोकेशन भी नहीं मिल पा रही है।

3. सोर्स के मुताबिक, इस हमले में हापतनाड़, कुलगाम, त्राल और कोकरनाग के पहाड़ों और जंगल में आतंकियों को ओवर ग्राउंड वर्कर्स से मदद मिली। ये नेटवर्क कम्युनिकेशन के लिए फोन भी इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। आतंकी ह्यूमन इंटेलिजेंस के जरिए ओवर ग्राउंड वर्कर्स से कॉन्टैक्ट करते हैं, जिससे इनकी लोकेशन का पता लगाना मुश्किल हो रहा है।

4. अभी इंटेलिजेंस और दूसरी एजेंसियां मुखबिरों की मदद से ओवर ग्राउंड वर्कर्स की तलाश कर रही हैं। पुराने और एक्टिव ओवर ग्राउंड वर्कर्स से पूछताछ की जा रही है। हालांकि, अब तक कोई खास जानकारी नहीं मिल पाई है।

ग्राफिक में देखिए आतंकियों ने हमले के लिए कहां-कहां रेकी की

पैसों-ड्रग्स का लालच, कुछ दिनों की ट्रेनिंग और ओवर ग्राउंड वर्कर तैयार ओवर ग्राउंड वर्कर्स के काम करने का तरीका जानने के लिए हमने आतंकी रह चुके एक शख्स से बात की। उन्हें आतंकियों के नेटवर्क से लेकर ओवर ग्राउंड वर्कर्स से कॉन्टैक्ट करने के तरीके तक पूरी जानकारी है।

वे बताते हैं, ‘अब कश्मीर में लोकल लोग आतंकियों को सपोर्ट नहीं करते। आतंकियों को सिर्फ ओवर ग्राउंड वर्कर्स से ही मदद मिल रही है। वही उन्हें खाना देते हैं। राशन और जरूरी सामान पहुंचाते हैं। पाकिस्तान से आने के बाद आतंकी ओवर ग्राउंड वर्कर्स के भरोसे ही रहते हैं।’

‘आतंकियों को हवाला के जरिए पैसे मिलते हैं। सपोर्ट के बदले ओवर ग्राउंड वर्कर्स इसी पैसे से कमीशन लेते हैं। बाकी पैसे आतंकियों तक पहुंचा देते हैं।’

‘ये लोग सिर्फ पैसों के लिए काम करते हैं। पहले हवाला के पैसों में कमीशन मिल गया। इसके बाद जैसे आतंकियों को किसी चीज की जरूरत है। अगर वो चीज 100 रुपए की है, तो ये उसे 300 रुपए में देते हैं। इस तरह भी उनकी कमाई होती है।’

‘आतंकी कहां छुपे हैं, इस बारे में सबसे बेहतर ओवर ग्राउंड वर्कर्स ही बता सकते हैं। वे सीधे उनके कॉन्टैक्ट में रहते हैं। इसीलिए आतंकियों का पता लगाने के लिए सबसे पहले उनके करीबी ओवर ग्राउंड वर्कर्स तक पहुंचना होगा।’

ये लोग आतंकियों के कॉन्टैक्ट में कैसे आते हैं, इनकी पहचान कैसे होती है? जवाब मिला, ‘ओवर ग्राउंड वर्कर से सीधे जुड़ने के लिए आतंकी संगठन सीधे किसी गांव या पहाड़ी इलाके से संपर्क नहीं करते। बल्कि इसकी शुरुआत जम्मू-कश्मीर की सेंट्रल जेल से होती है।’

‘यहां जेल में छोटे क्राइम या ड्रग्स केस में अंदर आए युवाओं को टारगेट किया जाता है। जेल में आतंकियों का नेटवर्क काम करता है। वे वहीं से संपर्क करते हैं। जेल में उन्हें आसानी से फोन और इंटरनेट का एक्सेस मिल जाता है। सारा नेटवर्क ही जेल से चलता है।’

पूर्व आतंकी बताते हैं, ‘पहलगाम में हमला करने वाले पाकिस्तानी टेररिस्ट हैं। पाकिस्तान से आए आतंकी इसी सोच से भारत आते हैं कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान लेनी है। वे मानकर आते हैं कि उनकी मौत तय है। इसलिए वे मरने-मारने के लिए ही आते हैं। उन्हें ओवर ग्राउंड वर्कर्स से रहने और खाने-पीने में मदद मिल जाती है।’

‘आतंकी उन लड़कों को तलाश करते हैं, जो पहले पत्थरबाज रहे हों, ड्रग्स की लत में हों, क्रिमिनल एक्टिविटी में रहे हों या लालच में आकर कुछ भी करने को तैयार हों। ऐसे भी लड़के होते हैं, जिनका क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं होता, लेकिन वे हर काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं।’

QuoteImage

ओवर ग्राउंड वर्कर्स को जंगल में थोड़ी ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें एके-47 को अलग करना, उसे जोड़ना, कहीं लेकर जाना या पहाड़ों पर ले जाना शामिल होता है।

QuoteImage

‘आतंकियों और ओवर ग्राउंड वर्कर्स के लिए बकायदा पाकिस्तान से फंड आता है। ये पैसे हवाला के जरिए सऊदी अरब से आते हैं। सऊदी अरब में ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का भी नेटवर्क है। वहीं कश्मीर के भी लोग होते हैं। हवाला के जरिए पैसे कश्मीर में किसी खास जगह आ जाते हैं।

‘अगर ISI ने उन्हें 1 लाख रुपए दिए हैं, तो 35% कमीशन काटकर कश्मीर में 65 हजार रुपए मिल जाएंगे। यही पैसे अलग-अलग आतंकी संगठनों को मिल जाते हैं। पैसे विदेशी आतंकियों को सीधे नहीं दिए जाते। हाइड आउट में छिपे आतंकियों तक उन्हें पहुंचाने में ओवर ग्राउंड वर्कर्स ही मदद करते हैं।’

‘टारगेट तक खाली हाथ जाते हैं आतंकी, हथियारों की सप्लाई ओवर ग्राउंड वर्कर्स का काम’ पाकिस्तान में आतंकी ट्रेनिंग ले चुके शख्स ने बताया, ’टारगेट वाली जगह आतंकी बिना हथियार के जाते हैं, ताकि कोई उन्हें ट्रेस न कर सके। फिर ओवर ग्राउंड वर्कर्स दूसरे रास्ते से उस जगह तक हथियार पहुंचाते हैं। इस नेटवर्क में महिलाएं भी होती हैं। ज्यादातर मामलों में महिलाएं ही हथियार और खाने का सामान पहुंचाती हैं। कई बार बच्चे भी मदद करते हैं। महिलाएं ज्यादा एक्टिव रहती हैं, क्योंकि उन पर आसानी से शक नहीं होता।’

‘ओवर ग्राउंड वर्कर्स का नेटवर्क गांव-गांव और मोहल्ले तक होता है। ये लोग आसपास नजर रखते हैं कि कौन किसके लिए काम कर रहा है। कौन आर्मी और पुलिस के लिए काम कर रहा है। कौन आतंकियों के सपोर्ट में है।’

‘आसपास रहने वाले लोगों की सोच क्या है। इससे उन्हें आगे आतंकियों का सपोर्ट करने में आसानी होती है। एक तरह से ये लोग आतंकियों के लिए मुखबिरी का काम करते हैं। किसी भी किलिंग में ओवर ग्राउंड वर्कर्स का बड़ा रोल होता है।’

ओवर ग्राउंड वर्कर पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत कार्रवाई होती है, ग्राफिक में इस एक्ट के बारे में पढ़िए

एक्सपर्ट बोले- ओवर ग्राउंड वर्कर्स अपने इलाके से वाकिफ, इसलिए आतंकियों के लिए जरूरी ओवर ग्राउंड वर्कर्स के नेटवर्क पर हमने डिफेंस एक्सपर्ट संजय कुलकर्णी से बात की। वे बताते हैं, ‘ओवर ग्राउंड वर्कर लोकल लोग होते हैं। वे अपने इलाके को जानते हैं। उन्हें रास्ते पता होते हैं। वे आतंकियों के लिए खाने-पीने का इंतजाम करते हैं। उन्हें रास्ते बताते हैं। रेकी करवाते हैं। उनकी मदद करते हैं।’

‘बॉर्डर के उस पार बैठे आतंकियों के लोग इधर भी हैं। ये स्लीपर सेल होते हैं। स्लीपर सेल का ताल्लुक ओवर ग्राउंड वर्कर्स से होता है। ओवर ग्राउंड वर्कर्स भी आतंकी मानसिकता के हैं। वे बिकाऊ हैं। उन्हें पैसे और ड्रग्स का लालच दिया जाता है। वे ड्रग्स बेचकर पैसे कमाते हैं। आतंकी तो बाहर के लोग हैं, उन्हें इलाकों के बारे में पता नहीं होता। ऐसे में ओवर ग्राउंड वर्कर्स उनकी मदद करते हैं।’

‘हमला करके किस गली से भागना है, किस दुकान से बाल कटाकर पहचान बदलनी है, वे सब बताते हैं। बाल काटने वाला, खाना खिलाने वाला, सब इन्हीं के आदमी हैं। इनका पूरा नेटवर्क है।

QuoteImage

ओवर ग्राउंड वर्कर्स को लगता है कि आतंकी मुजाहिद है, जिहादी है, हमारा मेहमान है, उन्हें लगता है कि ये खुदा का बंदा है, इसलिए उसकी मेेहमाननवाजी करनी है।

QuoteImage

‘डोडा, अनंतनाग, पहलगाम में आतंकी ऊपरी इलाकों में घूमते हैं। गांव नीचे पानी के पास होते हैं। आतंकियों के नेटवर्क में महिलाएं भी होती हैं। वे सुबह ऊपर की तरफ घास काटने जाती हैं और अपने साथ खाना ले जाती हैं। उन्हें पता होता है कि खाना कहां छोड़ना है। वे बताई गई जगह पर खाना छोड़कर आ जाती हैं, आतंकी खाना उठाकर ले जाते हैं।’

संजय कुलकर्णी बताते हैं, ‘इनकी मदद से आतंकी एक-दो दिन नहीं, कई बार तो महीनों तक वापस नहीं जाते। लोगों के बीच घुल-मिल जाते हैं। उनके साथ रहते हैं। फिर पता चलता है कि बड़ा टारगेट हाथ आ रहा है, तब घात लगाते हैं।’

‘कम्युनिकेशन के लिए उनके पास सैटेलाइट फोन हैं। उसे पकड़ना मुश्किल होता है। वॉकी-टॉकी होता है। मोबाइल तो ट्रेस हो जाता है। इसलिए ये क्या करते हैं कि अपना आदमी भेजते हैं। ये आंख और कान का काम करते हैं। इसके बदले उन्हें पैसा, तारीफ, ड्रग्स, हथियार मिलते हैं। हैंडलर्स को सब पता है कि किसके अकाउंट में कितने पैसे जाने हैं। ये सब पाकिस्तान से चलता है।’

………………………………..

पहलगाम हमले पर ये ग्राउंड रिपोर्ट भी पढ़ें

1. पाकिस्तानी कमांडो हाशिम मूसा ने हमले के लिए क्यों चुनी बायसरन घाटी

पहलगाम में हमले से पहले आतंकियों ने बेताब घाटी, अरु घाटी और एम्यूजमेंट पार्क की रेकी की थी। आखिर बायसरन घाटी को हमले के लिए चुना गया। वजह- पहलगाम आने वाले टूरिस्ट यहां जरूर आते हैं, यहां सिक्योरिटी नहीं होती है और आने-जाने का रास्ता ऐसा नहीं है कि हमले के बाद आर्मी तेजी से पहुंच सके। इसके पीछे पाकिस्तानी कमांडो हाशिम मूसा का दिमाग था। पढ़िए पूरी खबर…

2. 26 टूरिस्ट का कत्ल करने वाला आदिल कैसे बना आतंकी,साइंस और उर्दू में डिग्री

पहलगाम से करीब 55 किमी दूर अनंतनाग के गुरी गांव में आदिल का घर है। कभी बच्चों को पढ़ाने वाला आदिल अब 20 लाख का इनामी आतंकी है। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक वो पहलगाम हमले में शामिल था। हमले के बाद पुलिस और सेना आदिल के घर पहुंची थीं। इसी दौरान ब्लास्ट में आदिल का घर तबाह हो गया। पढ़िए पूरी खबर…

We will be happy to hear your thoughts

Leave a reply

Som2ny Network
Logo
Register New Account
Compare items
  • Total (0)
Compare
0
Shopping cart