Old Age Depression Symptoms; Loneliness | Mental Health | मेंटल हेल्थ– रिटायरमेंट के बाद से डिप्रेशन में हूं: जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा, बच्चे दूर हैं, बचपन बहुत याद आता है, क्या करूं


19 घंटे पहले

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सवाल– मेरी उम्र 65 साल है और मैं ग्वालियर की रहने वाली हूं। 42 साल सरकारी स्कूल में पढ़ाया, 13 साल स्कूल की प्रिंसिपल रही। रिटायर होते समय नहीं लगा था कि ये समय कितना मुश्किल होने वाला है।

मेरे दोनों बच्चे विदेश में रहते हैं। यहां मैं और मेरे हसबैंड हैं। यूं तो स्वास्थ्य ठीक है, शरीर भी चल-फिर रहा है, लेकिन फिर भी मुझे लग रहा है कि रिटायरमेंट के बाद से मैं डिप्रेशन में जा रही हूं। मुझे बच्चों की बहुत याद आती है। इतना ही नहीं, अचानक से मुझे अपना बचपन, अपने मां-बाबा की भी बहुत याद आने लगी है।

कई-कई दिन ऐसे गुजरते हैं, जब बिस्तर से उठने या कुछ भी करने का मन नहीं करता। किसी से मिलने, बात करने की इच्छा नहीं होती। बेवजह रोना आता है। मुझे पता नहीं कि ऐसा क्यों हो रहा है। क्या ये सचमुच डिप्रेशन है। क्या मेरी मेंटल हेल्थ खराब हो रही है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। क्या आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं?

एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर।

सवाल पूछने के लिए आपका बहुत शुक्रिया। कामों से भरपूर और बहुत अनुशासित जिंदगी जीने के बाद अक्सर लोगों के साथ ऐसा होता है कि रिटायर होने के बाद वो एक तरह का खालीपन और अवसाद महसूस करने लगते हैं। हम इस समस्या पर विस्तार से बात करेंगे और इस बारे में भी कि इस फीलिंग से उबरने के लिए आपको क्या करना चाहिए।

लेकिन सबसे पहले मैं आपको एक बात कहना चाहता हूं कि आप जिस अवस्था से गुजर रही हैं, वो डिप्रेशन बिल्कुल नहीं है। वास्तव में यह खालीपन और मकसद का खो जाना है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

1. आपके साथ क्या हो रहा है?

अब तक आपकी जिंदगी काफी व्यस्तताओं से भरी थी। घर, परिवार, बच्चों की जिम्मेदारी संभालने के साथ आप एक कमिटेड वर्किंग वुमन थीं। अब तक आपने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा ये सब काम करते हुए गुजारा-

  • बच्चों को पढ़ाना
  • स्कूल को संभालना
  • स्टाफ को गाइड करना
  • घर की जिम्मेदारियां संभालना
  • बच्चों की परवरिश करना
  • हर दिन जरूरी फैसले लेना

जब आप रिटायर हुईं, तब आप अपने करियर के शिखर पर थीं। आपके पास सबसे ज्यादा अनुभव, सबसे ज्यादा समझ और सबसे ज्यादा कौशल था। लेकिन उसके बाद अचानक एक दिन ये सारी जिम्मेदारियां शून्य हो गईं।

  • सुबह उठने के बाद स्कूल भागने की जल्दी नहीं थी।
  • कोई क्लास नहीं लेना था।
  • कोई स्टाफ मीटिंग नहीं अटेंड करनी थी।
  • कोई रिजल्ट नहीं प्लान करना था।
  • कोई असेंबली नहीं अटेंड करनी थी।

बाहर से देखें तो ऐसा लगता है कि अरे, सारी जिम्मेदारियां खत्म। अब तो यह “आराम” है। लेकिन अंदर से देखें तो दरअसल यह आराम नहीं, बल्कि “भूमिका का खोना या खत्म हो जाना” है। यह जीवन के स्ट्रक्चर का टूटना है।

आपका ब्रेन अब तक रोज ढेरों सूचनाओं, कामों, जिम्मेदारियों को प्रोसेस कर रहा था और अब अचानक वह एकदम खाली हो गया है। इसलिए इस खालीपन में ये सब होना स्वाभाविक है, जो आपके साथ अभी हो रहा है । जैसे-

  • बच्चों की याद आना
  • बचपन की बातें याद आना
  • मां–बाबा की याद आना
  • अधूरी इच्छाओं की कसक होना

अकेलापन और खालीपन होने से ये सारी चीजें सतह पर उभर आती हैं और यही चीजें मिलकर आपको एक तरह की उदासी और अकेलेपन की तरफ ले जा रही हैं।

आप जो भी महसूस कर रही हैं, उसे अपनी कमजोरी या कमी न समझें। यह जीवन में एक बड़े बदलाव की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।

2. क्या यह डिप्रेशन है?

एक छोटा सेल्फ-असेसमेंट टेस्ट

यहां मैं आपको एक छोटा सा टेस्ट दे रहा हूं। नीचे ग्राफिक में एक एसेसमेंट टेस्ट है। टेस्ट में कुल 10 सवाल हैं। आपको इन सवालों को ध्यान से पढ़ना है और 0 से 3 के स्केल पर इसे रेट करना है।

जैसेकि पहले सवाल का आपका जवाब अगर ‘नहीं’ है तो 0 नंबर दें और अगर आपका जवाब ‘लगभग रोज’ है तो 3 नंबर दें। अंत में अपने टोटल स्कोर की एनालिसिस करें।

नंबर के हिसाब से उसका इंटरप्रिटेशन भी ग्राफिक में दिया है। जैसेकि अगर आपका टोटल स्कोर 25 से 30 के बीच है तो इसका मतलब है कि डिप्रेशन की संभावना हो सकती है और आपको तुरंत किसी प्रोफेशनल काउंसलर से हेल्प लेने की जरूरत है।

3. सबसे जरूरी बात: आपकी कहानी यहां खत्म नहीं हुई

अपने 42 साल के लंबे करियर में आपने अनगिनत उपलब्धियां हासिल की होंगी। आपने –

  • सैकड़ों टीचर तैयार किए।
  • हजारों बच्चों की जिंदगी को छुआ।
  • भविष्य के नागरिकों की बुनियाद गढ़ी।
  • एक पूरे स्कूल की संस्कृति बनाई।

आपने पीक पर रहते हुए रिटायरमेंट लिया। इसका मतलब आपका अनुभव उस समय अपने सर्वोच्च स्तर पर था।

अब सवाल यह नहीं कि “मैं बेकार हो गई हूं।” अब असल सवाल ये है कि “अपने प्रोफेशनल करियर के शिखर पर रहते हुए आपने जो अनुभव अर्जित किए हैं, उनका उपयोग अब आप कैसे कर सकती हैं।”

अपनी सोच में इस एक छोटे से बदलाव के साथ ही उदासी से उद्देश्य की यात्रा शुरू होती है।

4. आज से शुरू होगा कल का प्लान

अभी आपके लिए जो काम सबसे जरूरी है, वो है अपने जीवन का एक मकसद हासिल करना और अपने पूरे दिन को एक स्ट्रक्चर में ढालना। इसमें सोने, जागने, दिन भर के जरूरी कामों का एक तयशुदा ढांचा होना चाहिए और दिन भर के जरूरी काम पहले से तय होने चाहिए।

हम सबसे बड़ी गलती ये करते हैं कि सुबह उठने के बाद सोचते हैं कि आज क्या करना है। ये सोच ही दिन को अनस्ट्रक्चर्ड बना देती है।

इसलिए अपने लिए एक नया नियम बनाएं-

“मैं सोने से पहले एक डायरी में कल का प्लान लिखूंगी, ताकि सुबह उठने के बाद मैं ‘खाली’ नहीं, बल्कि ‘तैयार’ महसूस करूं।”

इसके लिए आपको 10 मिनट का टुमॉरो प्लान बनाना है। आपको एक लिस्ट बनानी है कि आप दिन भर में क्या–क्या काम करने वाली हैं।

इन कामों को हमें मुख्य रूप से चार हिस्सों में बांटना है। पहला काम अपने शरीर के लिए यानी स्वस्थ और एक्टिव रहने के लिए। इसमें किसी भी तरह की एक्सरसाइज हो सकती है।

दूसरा काम अपने मन और खुशी के लिए। इसमें किताबें पढ़ना, संगीत सुनना, पेंटिंग या सिलाई करना या कोई फेवरेट फिल्म देखना भी शामिल हो सकता है। हालांकि स्क्रीन टाइम बहुत ज्यादा नहीं होना चाहिए। तीसरा और चौथा टास्क कनेक्शन और सोशल कॉन्ट्रीब्यूशन से जुड़ा होना चाहिए। नीचे ग्राफिक में देखिए।

सुबह उठकर अपनी डायरी देखिए कि आज आपके जिम्मे क्या-क्या काम हैं। इस तरह अब आपको पहले से पता होगा कि आज क्या-क्या करना है और आपका दिन ढीला नहीं, बल्कि पूरी तरह एक स्ट्रक्चर में ढला होगा।

5. जीवन का नया मिशन

युवा टीचर्स और छोटे स्कूलों के लिए मेंटरशिप

आपके पास जो ज्ञान और अनुभवों का खजाना है, वह अब किसी छोटे स्कूल या युवा टीचर के लिए वरदान बन सकता है। जरा सोचिए:

कितने छोटे निजी स्कूल हैं, जहां-

  • प्रिंसिपल की ट्रेनिंग नहीं है।
  • स्टाफ को गाइडेंस नहीं है।
  • टाइम–टेबल, परीक्षा, पेरेंट–मीटिंग सब ‘जैसे–तैसे’ चल रहे हैं।

कितने युवा टीचर हैं, जो-

  • आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं।
  • क्लास संभालने में हिचकते हैं।
  • बच्चों के बिहेवियर, पेरेंट्स की डिमांड और अपनी थकान के बीच फंसे रहते हैं।

आप उनके लिए वह सब बन सकती हैं, जो आप अपने करियर के आखिरी 10–15 सालों में अपने स्टाफ के लिए थीं।

यहां मैं आपको एक सरल सा 5–स्टेप का ‘मेंटरिंग मिशन प्लान’ दे रहा हूं। मैं यूके में बैठकर आपको यह सुझाव दे रहा हूं। इस काम में आप अपने हसबैंड या आसपास के यंग लोगों की मदद ले सकती हैं, जो भारत की ग्राउंड रिएलिटी की बेहतर समझ रखते होंगे।

1. सूची बनाएं

  • अपने शहर/क्षेत्र के 2–3 छोटे स्कूल या NGO टाइप संस्था के नाम लिखें।

2. संपर्क करें

  • एक–एक करके उन्हें कॉल या विजिट करें।

“मैं रिटायर्ड प्रिंसिपल हूं, युवा टीचर्स और स्कूल मैनेजमेंट को गाइड करने के लिए स्वेच्छा से अपना समय और सेवा देना चाहती हूं।”

3. छोटे लेवल पर शुरुआत करें

  • हफ्ते में 1 दिन, 1–2 घंटे
  • एक छोटा टॉपिक: क्लास मैनेजमेंट, परीक्षाओं की तैयारी, पेरेंट मीटिंग जैसे विषयों पर गाइड करना।

4. युवा टीचर्स के लिए मेंटर ग्रुप बनाएं

  • 4–5 टीचर, महीने में 1 बार बैठकी।
  • वे अपनी परेशानियां बताएं, आप अपना अनुभव और प्रैक्टिकल टिप्स दें।

5. आपके लिए टेक-अवे

  • एक डायरी में अपना ‘रोल रिटेंशन’ लिखें :

“मैं अब भी एक प्रिंसिपल हूं, बस मेरा स्कूल बदल गया है। पहले एक बिल्डिंग थी, अब यह पूरा शहर और कम्युनिटी ही मेरा स्कूल बन गया है।”

ये करने से आपके साथ दो चीजें होंगी-

  • यह काम आपको फिर से उपयोगी, जरूरी और जिंदा महसूस कराएगा।
  • और दूसरों को उस स्तर छूने में मदद करेगा, जहां आप खुद पहुंची थीं।
  • ये वही रोल–सटिस्फैक्शन है, जो आपको नौकरी के समय मिलता था। ये अब फिर मिलेगा, लेकिन एक नए रूप में।

6. कब तुरंत मदद लेना जरूरी

इन स्थितियों में आपको प्रोफेशनल हेल्प की जरूरत पड़ सकती है। अगर 2 हफ्ते से ज्यादा समय तक–

  • लगभग रोज उदासी महसूस हो।
  • नींद खराब हो।
  • भूख में तेजी से बदलाव हो (बिल्कुल न खाना या बहुत ज्यादा खाना)।
  • लोगों से पूरी तरह कट जाएं।
  • ऐसा लगे कि अब जीने का कोई मतलब नहीं।

तो यह संकेत है कि आपको तुरंत काउंसलर या क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट से मिलकर विस्तार से बात करनी चाहिए।

8. अंतिम बात

याद रखिए, जीवन खत्म नहीं हुआ है। यह गिरावट नहीं है, जिंदगी का एक नया मंच है। रोज रात में सोने से पहले खुद से कहिए, “मैंने जीवन में अब तक जो कुछ भी सीखा है, वो अब बांटने का समय है। यह मेरी जिंदगी का दूसरा गोल्डन फेज है– बस किताब का नया चैप्टर शुरू हो रहा है।”

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