
22 मिनट पहलेलेखक: शशांक शुक्ला
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भाईयों और बहनों के बीच एक बात को लेकर हमेशा बहस होती है कि मम्मी-पापा किसे ज्यादा प्यार करते हैं? यह बातें पेरेंट्स को भले ही मजाक लगती हों, लेकिन बच्चे वास्तव में ऐसा महसूस करते हैं।
हालांकि, इसमें बच्चों की गलती नहीं होती है। उन्हें जैसा महसूस होता है, वे वैसा ही बयान करते हैं। कई बच्चे तो यह समझ ही नहीं पाते हैं कि उनके साथ ऐसा कुछ हो रहा है।
हालांकि, माता-पिता से मिला कम प्यार या उपेक्षा का प्रभाव उनके पूरे जीवन पर पड़ता है।
हम सब इंसान हैं और किसी एक से अधिक प्यार करना या लगाव रखना नेचुरल ह्यूमन बिहेवियर है। हम इससे बच नहीं सकते हैं। हालांकि, बच्चा जैसा भी है आपका ही है।
ऐसे में आपकी जिम्मेदारी बनती है कि उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हो, जो उसके मेंटल और इमोशनल हेल्थ को नुकसान पहुंचाए।
ऐसे में आज हम रिलेशनशिप कॉलम में जानेंगे कि-
- पेरेंट्स किसी एक बच्चे ज्यादा प्यार क्यों करते हैं?
- इसका बच्चों पर क्या असर पड़ता है?
- ऐसा करने से पेरेंट्स खुद को कैसे बचाएं?

पेरेंट्स किसी एक बच्चे को ज्यादा प्यार क्यों करते हैं?
‘साइकोलॉजिकल बुलेटिन’ में छपी एक स्टडी के मुताबिक, पेरेंट्स उन बच्चों के प्रति ज्यादा झुकाव रखते हैं, जो जिम्मेदार और समझदार होते हैं।
हालांकि, पेरेंट्स इस बात को मानने से हिचकिचाते हैं। इसकी अन्य कई सारी वजहें भी हो सकती हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं।

समझदार और जिम्मेदार बच्चे: साइकोलॉजिकल बुलेटिन की स्टडी के मुताबिक, जो बच्चे समझदार होते हैं, हर काम को अच्छे से करते हैं, मिलनसार और दयालु होते हैं। लोगों के बीच आसानी से घुल-मिल जाते हैं। उन्हें माता-पिता से ज्यादा प्यार मिलता है।
माता-पिता की पहली संतान: घर के बड़े बच्चों को ज्यादा आजादी मिलती है। उनकी बात सुनी जाती है। ऐसे में छोटे बच्चा यह महसूस कर सकता है कि बड़े भाई या बहन को उनसे ज्यादा प्यार किया जाता है।
पेरेंट्स की पसंद का जेंडर: भारतीय समाज में लड़कियों की तुलना में लड़कों ज्यादा प्यार मिलता है। कई परिवारों में आज भी लोग संतान के रूप में लड़का ही चाहते हैं।
पेरेंट्स के स्वभाव से मेल खाता बच्चे का स्वभाव: ऐसे बच्चे जिनके साथ माता-पिता की पसंद या स्वभाव अधिक मिलते हैं, उनसे ज्यादा जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। ऐसे में दूसरे बच्चे कम प्यार का अनुभव कर सकते हैं।
किसी बीमारी या कमजोरी से परेशान बच्चा: जब कोई बच्चा किसी बीमारी से ग्रस्त है या किसी अन्य परेशानी में उलझा हुआ है, तो उसे ज्यादा प्यार की जरूरत हो सकती है।
किसी एक बच्चे पर ज्यादा प्यार लुटाने से दूसरे बच्चे पर इसका क्या असर होता है?
जब माता-पिता किसी एक बच्चे पर ज्यादा प्यार लुटाते हैं, तो दूसरा बच्चा उपेक्षित महसूस कर सकता है। ऐसे में उसके मेंटल और इमोशनल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
यह उसके करियर और जिंदगी दोनों पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं।

आत्मविश्वास की कमी: अगर कोई बच्चा बार-बार महसूस करता है कि उसके भाई-बहन को ज्यादा प्यार या तवज्जो मिल रही है, तो वो खुद को कमतर समझने लगता है। उसे लगता है कि वह काबिल नहीं है।
इससे उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है।
भाई-बहनों में तनाव: जब एक को ज्यादा प्यार मिले और दूसरे को कम, तो मन में ईर्ष्या, गुस्सा और नाराजगी आना स्वाभाविक है। ऐसे में छोटे-छोटे झगड़े बड़े झगड़े में बदल सकते हैं और रिश्ते में दूरियां आ सकती हैं।
यह असर सिर्फ बचपन में नहीं, बल्कि बड़े होकर भी बना रह सकता है।
माता-पिता से दूरी बन जाना: जिस बच्चे को उपेक्षित महसूस होता है, वह माता-पिता से खुलकर बात करना बंद कर देता है। वह सोचता है कि उसकी भावनाएं समझी नहीं जाती हैं।
इससे उनके रिश्ते में भावनात्मक दूरी आ जाती है और बच्चा अकेलापन महसूस करने लगता है।
अटेंशन पाने की कोशिशें: जब किसी को प्यार नहीं मिलता, तो वो अटेंशन पाने के लिए नकारात्मक तरीके अपनाने लगता है। जैसे जिद और गुस्सा करना या गलतियां करना।
ताकि पेरेंट्स का ध्यान उसकी तरफ जाए, भले ही डांट के रूप में ही क्यों न हो।
सामाजिक जीवन पर असर: ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो उन्हें दूसरों से घुलने-मिलने में, दोस्त बनाने या रिश्ते निभाने में परेशानी हो सकती है। आत्मविश्वास की कमी और अविश्वास की भावना उन्हें समाज से अलग कर सकती है।
मानसिक तनाव और अवसाद: लगातार उपेक्षा का असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। बच्चे चिंता, तनाव या डिप्रेशन में जा सकते हैं और अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं।
बदले की भावना: कई बार उपेक्षित बच्चा दूसरों के प्रति बदले की भावना पालने लगता है। चाहे वो माता-पिता हों या भाई-बहन। ये भावना धीरे-धीरे गहरी होती जाती है और रिश्तों में खटास ला सकती है।
खुद को दोष देना: सबसे खतरनाक असर ये होता है कि बच्चा सोचने लगता है कि वो प्यार के लायक है ही नहीं। हर बात के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगता है।
क्या पेरेंट्स जानबूझकर फेवरेटिज्म करते हैं?
आमतौर पर पेरेंट्स अनजाने में ही किसी एक बच्चे से ज्यादा जुड़ जाते हैं, जैसे मिलनसार या खुलकर भावनाएं जताने वाले बच्चे ज्यादा ध्यान खींचते हैं।
इसका मतलब यह नहीं कि वे दूसरों को प्यार नहीं करते, बस उनके व्यवहार में संतुलन की कमी हो सकती है। हालांकि, कुछ मामलों में पेरेंट्स जानबूझकर फेवरेटिज्म करते हैं।
पेरेंट्स खुद को फेवरेटिज्म से कैसे बचा सकते हैं?
सचेत रहें: अपने व्यवहार पर समय-समय पर नजर डालें। क्या आप किसी एक बच्चे से ज्यादा सख्त या ज्यादा नरम तो नहीं हैं?बातचीत करें: बच्चों से खुलकर बात करें और उन्हें भरोसा दिलाएं कि हर एक उनके लिए खास है।
समय बराबर बांटे: हर बच्चे के साथ कुछ वक्त अकेले में बिताएं, उनकी बातों को सुनें और उनकी पसंद-नापसंद को जानें।
तुलना करने से बचें: बच्चों की एक-दूसरे से कभी तुलना न करें। हर बच्चे का हुनर, सोच और जरूरतें अलग होती हैं।
पेरेंटल फेवरेटिज्म से भाई-बहनों के रिश्ते पर क्या असर पड़ता है?
इसका फेवरेट और नापंसद किए जाने वाले दोनों बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है। आइए इसे बुलेट प्वाइंट्स में समझते हैं।
ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा: जब एक को ज्यादा प्यार मिलता है, तो दूसरा बच्चा खुद को पीछे समझने लगता है। इससे जलन और मुकाबले की भावना बढ़ती है।
सहयोग की भावना में कमी: एक-दूसरे को सहयोग देने के बजाय, बच्चों में मुकाबले की भावना घर कर जाती है, जिससे घर का माहौल भी तनावपूर्ण बन सकता है।
यह तनाव केवल बचपन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि बड़े होकर भी जारी रह सकता है।
भावनात्मक दूरी बन जाती है: जो बच्चा उपेक्षित महसूस करता है, वह अपने भाई या बहन से खुलकर बात करना कम कर देता है। इससे रिश्ते में आत्मीयता और अपनापन धीरे-धीरे खत्म हो सकता है।
भरोसे की कमी हो जाती है: पसंदीदा बच्चे को लेकर यह शक बना रहता है कि वह हमेशा माता-पिता की तरफ रहेगा। इससे दूसरे बच्चे का भरोसा टूट जाता है और रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है।
अलगाव की भावना जन्म लेती है: उपेक्षित बच्चा धीरे-धीरे खुद को परिवार से अलग मानने लगता है। वह भाई-बहनों से दूरी बना लेता है और पारिवारिक रिश्ते कमजोर हो जाते हैं।
अगर एक बच्चे को खास देखभाल की जरूरत हो, तो क्या ज्यादा ध्यान देना पक्षपात है?
नहीं, बिल्कुल नहीं। अगर कोई बच्चा बीमार है या उसे शारीरिक या मानसिक रूप से अधिक सहयोग चाहिए, तो उसका ख्याल रखना एक जिम्मेदारी है, पक्षपात नहीं।
दूसरे बच्चे को भी उसके भाई या बहन की मदद करने के लिए कहें। ताकि वे खुद को जिम्मेदार और महत्वपूर्ण महसूस करें। उसे समझाएं कि बीमार या कमजोर भाई या बहन का ख्याल रखना उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।