
6 दिन पहलेलेखक: शिवाकान्त शुक्ल
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सवाल: मैं दिल्ली से हूं। मेरे दो बच्चे हैं। एक 10 साल का बेटा और 7 साल की बेटी। दोनों के बीच अक्सर झगड़े होते रहते हैं। कभी टीवी रिमोट को लेकर, कभी खिलौनों के लिए तो कभी मम्मी-पापा का अटेंशन किसे ज्यादा मिल रहा है, इसी बात पर बहस शुरू हो जाती है। छोटी-सी बात भी देखते-देखते झगड़े में बदल जाती है।
अक्सर मुझे बीच-बचाव करना पड़ता है, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि दोनों मुझसे ही नाराज हो जाते हैं। डांटने या समझाने पर कुछ देर के लिए शांति रहती है, मगर थोड़ी ही देर बाद फिर वही लड़ाई शुरू हो जाती है। कभी-कभी लगता है कि यह सिर्फ बच्चों के बीच की सामान्य तकरार है, लेकिन कई बार झगड़े इतने बढ़ जाते हैं कि घर का माहौल तनावपूर्ण हो जाता है।
ऐसे में मुझे समझ नहीं आता कि इसे सामान्य ‘सिबलिंग राइवलरी’ मानूं या फिर किसी गहरी समस्या का संकेत। मैं चाहती हूं कि दोनों में आपसी समझ, टीमवर्क और प्यार भरा रिश्ता बने। कृपया बताएं कि क्या यह सामान्य है। मैं बतौर मां किस तरह का व्यवहार अपनाऊं ताकि दोनों बच्चों में सहयोग और संतुलन की भावना विकसित हो?
एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर
जवाब- मैं आपकी चिंता को समझ सकती हूं। सिबलिंग्स के बीच झगड़े अक्सर पेरेंट्स के लिए भावनात्मक रूप से थका देने वाला अनुभव होता है। लेकिन सबसे पहले ये समझिए कि सिबलिंग राइवलरी यानी भाई-बहनों के बीच कंपटीशन और झगड़ा बचपन का हिस्सा है।
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (APA) के अनुसार, लगभग 70–80% बच्चे सिबलिंग राइवलरी का अनुभव करते हैं। यह उनके विकास और सोशल बिहेवियर का स्वाभाविक हिस्सा है। हालांकि जब यह रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने लगे या झगड़े हिंसक रूप लें तो इस पर गंभीरता से ध्यान देना जरूरी है।
सिबलिंग राइवलरी के कारणों को करें आइडेंटिफाई
सिबलिंग्स के बीच झगड़ों के पीछे इनसिक्योरिटी, अटेंशन पाने की चाहत या घर के माहौल का असर समेत कई कारण हो सकते हैं। ऐसे में इसका हल निकालने से पहले कारणों को समझना जरूरी है।

आइए, इन पॉइंट्स को समझते हैं।
पेरेंट्स के अटेंशन की चाहत
यह सबसे आम कारण है। हर बच्चा चाहता है कि माता-पिता उसे ज्यादा प्यार करें। जब उसे लगता है कि दूसरे भाई या बहन को ज्यादा अटेंशन मिल रही है (भले ही ऐसा न हो) तो वे इसके लिए झगड़ा शुरू कर देते हैं।
भावनाओं को व्यक्त न कर पाना
छोटे बच्चे अक्सर अपनी निराशा, ईर्ष्या या थकान को शब्दों में बयां नहीं कर पाते हैं। इसलिए वे अपनी भड़ास मारने, छीनने या रोने के रूप में निकालते हैं।
थकान या भूख से चिड़चिड़ापन
कई बार झगड़े का असली कारण बहुत साधारण होता है, जैसे- स्कूल से थककर आना, भूख लगना या नींद पूरी न होना। इस स्थिति में बच्चों का खुद पर कंट्रोल कम हो जाता है और वे छोटी-छोटी बातों पर भड़क जाते हैं।
पक्षपातपूर्ण व्यवहार
कई बार माता-पिता अनजाने में ही एक बच्चे का पक्ष लेते दिखते हैं। जैसे ‘तुम बड़े हो, तुम्हें समझदारी दिखानी चाहिए’ या ‘वह छोटी है, उसे दे दो।’ यह दोनों बच्चों के मन में नाराजगी भर देता है। बड़े बच्चे को लगता है कि उस पर हमेशा जिम्मेदारी डाली जाती है और छोटे को लगता है कि उसे ‘छोटा’ समझकर गंभीरता से नहीं लिया जाता।
घर में तनावपूर्ण माहौल
बच्चे ‘स्पंज’ की तरह होते हैं। अगर घर में माता-पिता के बीच तनाव है या काम का स्ट्रेस है तो बच्चे उस तनाव को महसूस करते हैं। उसे अपने भाई-बहन पर झगड़कर निकालते हैं क्योंकि वही उनके लिए सबसे ‘सेफ टारगेट’ होते हैं।

प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल की कमी
बच्चों को यह नहीं पता होता कि अगर दो लोगों को एक ही चीज चाहिए तो उसका हल कैसे निकाला जाए। उनके पास सिर्फ दो ही तरीके होते हैं, या तो लड़कर छीन लो या रोकर बड़ों से शिकायत कर दो।
सिबलिंग राइवलरी सामान्य है या समस्या?
ज्यादातर मामलों में यह बच्चों के लिए एक डेवलपमेंटल फेज यानी विकास की सामान्य प्रक्रिया होती है। कई स्टडीज बताती हैं कि ज्यादातर सिबलिंग्स बचपन में झगड़ते हैं, लेकिन किशोरावस्था तक ये अपने आप धीरे-धीरे कम हो जाती है। हालांकि अगर झगड़े रोजाना हों, ये बच्चों के मूड, नींद या स्कूल पर असर डालें या वे एक-दूसरे से दूरी बनाने लगें तो इसे हल्के में न लें। यह संकेत है कि बच्चों को अपनी भावनाएं कंट्रोल करने या साझा करने में मदद की जरूरत है। इसके लिए कुछ संकेतों को बिल्कुल भी इग्नोर नहीं करना चाहिए।

सिबलिंग राइवलरी का बच्चों और परिवार पर असर
इसका असर बच्चों की इमोशनल और सोशल ग्रोथ पर पड़ता है।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट (NICHD) की रिसर्च के अनुसार, अनसुलझे झगड़े बच्चों में एंग्जाइटी, लो कॉन्फिडेंस और कमजोर सोशल स्किल्स का कारण बन सकते हैं। लंबे समय में इससे भाई-बहनों के बीच का बॉन्ड कमजोर हो जाता है और परिवार का माहौल भी थकाऊ बन जाता है।

सिबलिंग राइवलरी को सुलझाने के तरीके
अक्सर माता-पिता गुस्से में आकर बच्चों को डांटते या सजा देते हैं। इससे अस्थायी शांति तो आती है, लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं होता है। डर या दबाव से बच्चे झगड़ा बंद कर देते हैं, लेकिन उनसे यह नहीं सीख पाते कि मतभेद को कैसे सुलझाना है। इसलिए जरूरी है कि आप उन्हें सहयोग, बातचीत और टीमवर्क की दिशा में गाइड करें। इसके लिए कुछ बातों का खास ख्याल रखें।

बच्चों को कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन सिखाना जरूरी
साल 2002 में जर्नल ऑफ पीस साइकोलॉजी में एक स्टडी पब्लिश हुई। इसके मुताबिक, अमेरिका के पेंसिल्वेनिया के स्कूलों में क्लास 2 से 10 तक के बच्चों को कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन प्रोग्राम में शामिल किया गया। छुट्टियों के बाद जब पेरेंट्स से बच्चों के व्यवहार पर फीडबैक लिया गया तो ज्यादातर ने बताया कि घर में छोटे-छोटे झगड़े कम हुए हैं।
एक बच्चे ने तो कहा कि दादा-दादी को भी ये प्रोग्राम अटेंड करना चाहिए। जबकि एक बच्ची ने अपनी बिल्ली के झगड़े को शांत कराने की कोशिश की। यह दिखाता है कि बच्चों को कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन या प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल सिखाना बहुत जरूरी है। इससे उनमें समझ और सहानुभूति विकसित होती है।
पेरेंट्स इन गलतियों से बचें
कई बार माता-पिता अनजाने में झगड़े और बढ़ा देते हैं। जैसे एक बच्चे को फेवर करना या तुरंत फैसला थोप देना। इससे जलन और दूरी दोनों बढ़ती है। ऐसे में पेरेंट्स को कुछ गलतियों से बचना चाहिए।

अंत में मैं यही कहूंगी कि सिबलिंग राइवलरी एक चुनौती जरूर है, लेकिन यह बच्चों को एक-दूसरे का सबसे बड़ा सपोर्टर बनाने का एक अवसर भी है। आप दिल्ली में हैं, आपके पास कई संसाधन उपलब्ध हैं। आप अपने बच्चों को ऐसी एक्टिविटीज या वर्कशॉप्स में डाल सकती हैं, जहां उन्हें टीमवर्क करने का मौका मिले। कई प्लेग्रुप्स या हॉबी क्लासेज इस पर फोकस करती हैं।
याद रखें आपका लक्ष्य ‘झगड़ा-मुक्त’ घर बनाना नहीं, बल्कि एक ऐसा घर बनाना होना चाहिए, जहां मतभेदों को सम्मान और समझ के साथ सुलझाया जाता हो। इसमें समय लगेगा, लेकिन आपका धैर्य, आपका शांत व्यवहार और आपके लगातार प्रयास ही बच्चों के रिश्ते की नींव को मजबूत करेंगे।
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