West Bengal TMC BJP Congress Leader Murder Story; Victim Family | Election 2026 | ब्लैकबोर्ड- बंगाल की चुनावी हिंसा में पिता, पति की हत्या: पार्टी ने इलेक्शन में मुद्दा बनाया, अब कोई पूछने वाला भी नहीं, 2 हजार में गुजारा


पश्चिम बंगाल में साल 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान मेरे पिता मानस पर हमला हुआ। उन लोगों ने लाठी- डंडों से पापा को मारा। उनका सिर फट गया। उनकी मौत हो गई। पापा डायमंड हार्बर इलाके से भाजपा उम्मीदवार थे। उस वक्त प्रदेश में राजनीतिक माहौल था। तब बड़े-ब

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ये कहते ही मानस शाह की बेटी फूट-फूटकर रोने लगती हैं

ब्लैकबोर्ड में स्याह कहानी उनकी जिनकी राजनीतिक रंजिश के चलते हत्या हुई, इसे चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया गया, लेकिन बाद में उनके परिवार को किसी ने पूछा भी नहीं…

कोलकाता से लगभग 80 किलोमीटर दूर 24 परगना, उस्थी गांव में हम मानस शाह के घर पहुंचे। गांव में मानस शाह का घर इतना बड़ा है कि दूर से ही नजर आ रहा है। यहां उनकी पत्नी और दो बेटियां रहती हैं। बड़ी बेटी स्वाति शाह मैकेनिकल इंजीनियर है।

स्वाति बताती हैं कि पश्चिम बंगाल में साल 2021 के विधानसभा चुनाव हो रहे थे। मेरे पापा मानस शाह डायमंड हार्बर इलाके से बीजेपी उम्मीदवार थे। इस दौरान अचानक से कुछ उग्र लोगों की भीड़ आई और पापा पर लाठियों से ताबड़तोड़ हमला करने लगी।

स्वाति और उनके परिवार का आरोप है कि मानस शाह पर हमला करने वाले टीएमसी के लोग थे।

स्वाति कहती हैं कि पापा को समर्थकों ने बचाने की कोशिश भी की और लहूलुहान हालत में उन्हें किसी तरह कार में बिठाया। हमले के तीन घंटे बाद भी कोई उन्हें अस्पताल तक नहीं पहुंचा पाया क्योंकि टीएमसी के कार्यकर्ता चारों तरफ घूम रहे थे। वो पापा के खून के प्यासे थे।

स्वाति कहती हैं कि शुरुआत में तो पार्टी ने मदद की, लेकिन चुनाव के बाद हमें कोई पूछने नहीं आया।

स्वाति कहती हैं कि शुरुआत में तो पार्टी ने मदद की, लेकिन चुनाव के बाद हमें कोई पूछने नहीं आया।

आखिरकार कार में ही पापा के कपड़े बदले गए ताकि उन्हें कोई पहचान न सके। फिर वो लोग पापा को अनजान रास्ते से घर तक ले आए। यहां से हम उन्हें एक छोटे से नर्सिंग होम लेकर गए। उन्हें फर्स्ट एड दिया गया। कोविड का दौर था, अस्पताल ले जाने के सारे रास्ते जाम थे। कोई मदद नहीं मिली। वो बेहोश थे। उनका माथा फूल गया था, ब्लड प्रेशर भी हाई था। यहां से 80 किमी दूर एक छोटे से नर्सिंग होम में सीटी स्कैन हुआ। पता चला कि ब्रेन हेमरेज हो गया है।

पापा की हालात गंभीर थी। पास के अस्पताल में आईसीयू बेड नहीं मिला। इसलिए 100 किलोमीटर दूर कोलकाता के न्यूरो साइंस अस्पताल में जैसे-तैसे उन्हें एडमिट करवाया गया। तीन बार उनके सिर का ऑपरेशन हुआ। हमें लगा कि पापा ठीक हो रहे हैं। तभी एक दिन अस्पताल से फोन आया कि मरीज को घर ले जाइए। अस्पताल पहुंचे तो हमें पापा की डेड बॉडी दे दी गई। कहने लगे कि हार्ट अटैक आया था।

मैंने डायमंड हार्बर थाने में मर्डर की एफआईआर दर्ज करवाई थी, उसके बाद से धमकियां मिलने लगीं। तब पार्टी स्तर पर हमें केस आगे बढ़ाने में काफी मदद मिली। उस वक्त पूरे प्रदेश में राजनीतिक माहौल था, लेकिन बाद में केस दब गया। अब न तो कोई मदद है, न ही कोई सुगबुगाहट।

उस वक्त हम पापा की डेड बॉडी लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के घर भी गए थे, लेकिन हमें वहां से कोई मदद नहीं मिली।

जब जब चुनाव आते हैं तभी पार्टी से जुड़े लोग हमें याद करते हैं, घर आते हैं और मीडिया में ये मुद्दा उठाते हैं। पापा की हत्या को राजनीतिक मुद्दा बनाया जाता है। चुनाव के बाद सब इस बात को भूल जाते हैं। हमें इंसाफ दिलाने वाला कोई नहीं।

स्वाति कहती हैं, मैंने पापा को खोया, मेरी मां ने अपना पति खोया, लेकिन अब हमें कोई पूछने तक नहीं आता। किसी ने ये तक जानने की कोशिश नहीं की कि हम जिंदा भी हैं या नहीं, हमारा गुजारा कैसे हो रहा है। जब-जब चुनाव आते हैं तब तब वो मेरे पापा के बारे में पूछते हैं। कहते हैं- अरे ! केस का क्या हुआ?

रह-रहकर स्वाति का गुस्सा उस राजनीतिक पार्टी पर फूट रहा है, जिससे मानस शाह जुड़े हुए थे। बात करते-करते बीच-बीच में वो रोने भी लगती हैं। इमोशनल होकर कहती हैं कि पापा थे, तो सब कुछ था। हर मुसीबत में पापा सामने आकर खड़े हो जाते थे।

स्वाति के घर पर लगी पिता मानस शाह की तस्वीर।

स्वाति के घर पर लगी पिता मानस शाह की तस्वीर।

हमारे इलाके में आज भी ट्यूबवेल नहीं है, पीने के पानी की सप्लाई नहीं है। सड़कें खराब हैं। विपक्ष के लोगों का कहना है कि यह मानस शाह का इलाका है, यहां कोई सुविधा नहीं देनी है। आज भी मंच से विपक्ष के लोग पापा को लेकर उल्टी-सीधी बातें कहते हैं।

एक दफा हमारे यहां लाइट चली गई, तो मैं पंचायत दफ्तर शिकायत करने के लिए गई। वहां से मुझे गाली देकर भगा दिया गया। पापा के जाने के बाद घर पर सिर्फ महिलाएं ही रह गई हैं। हमारा कोई भाई भी नहीं है।

अब हम सिर्फ न्याय चाहते हैं, लेकिन पार्टी हमारी मदद नहीं कर रही है। अगले साल विधानसभा चुनाव है। फिर से पापा की हत्या का जिक्र होगा, लेकिन न्याय की बात कोई नहीं कर रहा है।

पश्चिम बंगाल में ऐसी ही राजनीतिक हत्या की कहानी है टीएमसी कार्यकर्ता संतोष यादव की हत्या की। जिनकी हत्या का आरोप बीजेपी कार्यकर्ताओं पर है।

कोलकाता से 100 किलोमीटर की दूरी पर नैहाटी इलाका है। जहां इसी साल फरवरी में टीएमसी कार्यकर्ता संतोष यादव की हत्या हुई है। इसी इलाके से सटा हुआ एक इलाका है भाटपारा। नैहाटी और भाटपारा का राजनीतिक पारा आजकल चढ़ा हुआ है।

इसी साल 31 जनवरी को हुई संतोष यादव की हत्या के बाद इलाके में तनाव है। टीएमसी और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो रही है। दरअसल, नैहाटी और भाटपारा नॉन बंगाली इलाका है। यहां हिंदी पट्‌टी यानी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग रहते हैं। आमतौर पर यहां राजनीतिक माहौल हमेशा ही गरम रहता है।

31 जनवरी को 36 साल के टीएमसी कार्यकर्ता संतोष यादव को पहले गोलियों से भूना गया, फिर पत्थर से कुचलकर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। आरोप भाजपा कार्यकर्ताओं पर है। 16 साल पहले संतोष यादव की पुष्पा यादव से शादी हुई थी। संतोष पुरानी कारों की खरीद-फरोख्त का काम करते थे। उन्हीं की कमाई से गुजारा होता था।

पुष्पा यादव कहती हैं कि 31 जनवरी के दिन सुबह से मेरा मन बेचैन था। मैंने अपने पति संतोष यादव से कहा कि मुझे मंदिर जाना है। दोपहर में हम बेटे को लेकर मंदिर के लिए निकल गए। संतोष के दो दोस्त करीम और गोपाल भी साथ थे।

पत्नी पुष्पा यादव कहती हैं पत्थर से सिर कुचलकर मेरे पति संतोष यादव की हत्या कर दी गई।

पत्नी पुष्पा यादव कहती हैं पत्थर से सिर कुचलकर मेरे पति संतोष यादव की हत्या कर दी गई।

सभी अपनी-अपनी बाइक पर थे। शिवाला मोड़ तक पहुंचे ही थे कि आठ-दस लोगों ने मेरे पति को घेर लिया। सभी के हाथ में डंडे और ईंटें थीं। वे लोग संतोष यादव को गालियां देने लगे। पुष्पा का आरोप है कि वो लोकल भाजपा नेता के लोग थे।

पुष्पा कहती हैं कि उनमें से एक ने अचानक बंदूक निकाली और संतोष यादव पर चला दी, लेकिन बंदूक चली नहीं और संतोष घबरा कर पीछे की ओर नाली में गिर गए। मैंने अपने पति को उठाया। किसी तरह से संतोष करीम के साथ छिपते-छिपाते पुलिस स्टेशन के लिए ऑटो ढूंढने लगे। हम लोग वहीं रह गए थे।

हमलावर भी संतोष के पीछे भागे। आखिरकर उन्होंने संतोष के ऑटो को घेर लिया। संतोष को घसीट कर बाहर निकाला। पहले तो उन्हें गोलियां मारीं, फिर ईंटों से सिर कुचल दिया। तभी करीम मेरे पास वापस आया और सारी कहानी बताई।

पुष्पा यादव का कहना कि वे लोग चिल्ला रहे थे कि मार दो इसे। कुछ दिन पहले इन्हीं भाजपा कार्यकर्ताओं ने संतोष यादव की मां से भी कहा था कि अपने बेटे को समझा लो, नहीं तो भारी मुसीबत आएगी। संतोष यादव अपने इलाके में टीएमसी का मजबूत हाथ थे। टीएमसी को कमजोर करने और डराने के लिए संतोष यादव की हत्या की गई।

पार्टी के लोकल काउंसलर रंजन का कहना है कि संतोष यादव उनका राइट हैंड था। वह पार्टी का ईमानदार कार्यकर्ता था और उसे जो काम दे दिया जाता था उसे वह शिद्दत से पूरा करता था। काउंसलर का कहना है कि मुझे कमजोर करने के लिए संतोष यादव की हत्या की गई है।

पुष्पा यादव कहती हैं कि मेरे पति की हत्या को लेकर हर तरफ शोर है। राजनीतिक पार्टियों ने इसे मुद्दा बना रखा है, लेकिन हम लोगों को कोई नहीं पूछता है। कोई हमारे घर नहीं आता, हमसे ये नहीं पूछता कि हम किस हाल में हैं, हमारा गुजारा कैसे हो रहा है।

पुष्पा रोते हुए कहती हैं कि दो झुग्गी का किराया 2000 रुपए मिलता है। उसी में गुजारा कर रहे हैं। खाने के लिए सरकारी राशन आता है। पार्टी ने हमारी मदद नहीं की। हमारे घर में कमाने वाले इकलौते संतोष ही थे। मैं तो कभी घर से बाहर निकली नहीं। आज हम जिस हाल में हैं, हमारा दिल ही जानता है। हमको इंसाफ चाहिए।

संतोष यादव की मां, बेटे की फोटो लेकर कहती हैं, अस्पताल में बेटे की डेड बॉडी देखी तो चेहरा भी नहीं पहचाना जा रहा था। पत्थरों से चेहरा कुचल दिया था।

संतोष यादव की मां कहती हैं- मेरे बेटे को मार दिया। अब हमें देखने वाला कोई नहीं बचा।

संतोष यादव की मां कहती हैं- मेरे बेटे को मार दिया। अब हमें देखने वाला कोई नहीं बचा।

इलाके में राजनीतिक हमलों में घायल कार्यकर्ता भी कम नहीं हैं। भाटपारा में रहने वाले उमेश सिंह टीएमसी से जुड़े हुए हैं। उमेश बताते हैं कि साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान यहां बहुत तांडव हुआ। गोली चली, घर जला दिए। जिन लड़कों के हाथ में कॉपी-कागज होना चाहिए, उनके हाथों में बम था।

उमेश कहते हैं कि इलाके का पार्टी ऑफिस तोड़ दिया गया। बम फेंके गए। मुझे रॉड और लोहे की चेन से मारा गया। सिर फट गया। मैं दो महीने अस्पताल में भर्ती रहा। सिर में 32 टांके लगे और जबड़े में स्टील की प्लेट लगी है। उमेश सिंह का आरोप है कि डराने-धमकाने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने ऐसा किया।

उमेश कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मेरे साथ मार-पीट हुई।

उमेश कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मेरे साथ मार-पीट हुई।

कोलकाता में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक देबांजन कहते हैं कि बंगाल में राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए आम इंसानों का इस्तेमाल करती हैं। राजनीतिक अभियान और चुनावी रिजल्ट के दिन यहां बड़े पैमाने पर हिंसा देखने को मिलती है। राजनीतिक हत्याएं होती हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर इन हत्याओं का आरोप लगाती हैं।

देबांजन कहते हैं कि इनमें सबसे ज्यादा नुकसान उन परिवारों का होता है जिनके अपनों की हत्या होती है। चुनाव जीतने के लिए पार्टी इसे मुद्दा बना लेती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनके परिवारों की कोई सुध नहीं लेता।

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